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वक्तव्य. .
पड़ी है। पर आज हमें इससे सन्तोष नहीं हो सकता । अध्यात्मवाद की जगह अब आधिभौतिकवाद (पुद्गलवाद ) ने लेली है । अतएवं आधिभौतिक वाद का मुकाबिला करने के लिए अथवा आधिभौतिक संसार में इज्जत-श्राबरू से जीने के लिए हमें आधिभौतिकवादियों जैसा इतिहास निर्माण करना ही होगा । यहीसमय का तकाजा है। ___ प्रस्तुत पुस्तक में अधिकांश खून-खराबे और मार-काट का ही वर्णन पढ़ कर पाठक मुझे अशान्त, क्रूर-हृदय, युद्ध-प्रेमी सममेंगे,पर बात इससे बिल्कुल भिन्न है । मैं पूर्णतया शान्ति, अहिंसा
और विश्वप्रेम का उपासक हूँ। मैं युद्ध से होने वाले कुपरिणामों से अनभिज्ञ नहीं, युद्ध सभ्य जाति और सभ्य देशों के लिये कलंक है, मैं कभी देश के होनहार बालकों के मस्तिष्क में यद्ध सम्बन्धी संस्कार नहीं भरना चाहता । मेरी अभिलाषा है कि संसार से शस्त्रवाद का नाम ही उठजाय, आत्मिक बल के आगे शारीरिक बल का प्रयोग करना ही लोग भूल जाँय ! पर, यह तभी हो सकता है, जब सबल राष्ट्र बलवती जातियाँ-निर्बल राष्ट्रों-अल्प संख्यक जातियों को हड़प जाने की दुरेच्छा का अन्त करदें। उपदेश तरंगिणी, हरिसौभाग्यकाव्य, श्रीविजयप्रशस्ति काव्य; श्रीभानुचन्दचरित्र, विजयदेवमहात्म्य, दिगविजय महाकाव्य, देवानन्दाभ्युदयकाव्य, झगडुचरित्र, सुवृतसागर, भद्रबाहुचरित्र आदि इन संस्कृत-प्राकृत अन्थों के अतिरिक भाषा के रास भी बहुत से मिलते हैं जो ऐतिहासिक वृत्तान्तों से भरे पड़े हैं । जैसे:-विमलमंत्री का रास, यशोभद्रसूरि रास, कुमारपाल रास, हरिविजय कां रास आदि।
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उपदेश तरंगिणागविजय महाकाव्य माइत अन्योक