Book Title: Panchastikay
Author(s): Kundkundacharya, Shreelal Jain Vyakaranshastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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षड्द्रव्य-पंचास्तिकायवर्णन अक्रायत्व है-ऐसा इसीसे ( इस कथनसे ही ) सिद्ध हुआ । इसीलिये, यद्यपि वे सत ( विद्यमान ) हैं तथापि उन्हें अस्तिकायके प्रकरणमें नहीं लिया है ।।४।।
संस्कृत तात्पर्यवृत्ति गाथा-४ अथ पंचास्तिकायानां विशेषसंज्ञाः सामान्यविशेषास्तित्वकायत्वं च प्रतिपादयति,-जीवा पोग्गलकाया धम्माधम्मं तहेव आयासं-जीवपुद्गलधर्माधर्माकाशानीति पंचास्तिकायानां विशेषसंज्ञा अन्वर्थी ज्ञातव्या अत्थित्तम्हि य णियदा-अस्तित्वे सामान्यविशेषसत्तायां नियता: स्थिताः । तर्हि सत्तायाः सकाशात्कुण्डे वदराणीव भिन्ना भविष्यन्ति । नैवं । अणण्णमइया अनन्यमन्या अपृथग्भृता: यथा घटें रूपादयः शरीरे, हस्तादयः स्तम्भेसार इत्यनेन व्याख्यानेनाधाराधेयभावेप्यविनास्तित्वं भणितं भवति । इदानी कायत्वं चोच्यते । अणुमहंता-अणुमहान्तः आणुना परिच्छिन्नत्वादाशब्देनात्र प्रदेशः गृह्यन्ते, अणुभिः प्रदेशैर्महान्तोआणुमहांत: । द्वयणुकस्कन्धापेक्षया द्वाभ्यामगृभ्यां महान्तोऽणुमहान्तः इति कायत्वमुक्तं । एकप्रदेशागो: कथं कायत्वमिति चेत् ? स्कन्धानां कारणभृताया: स्निग्धरूक्षत्वशक्ते: सद्भावादुपचारेण कायत्वं भवति । कालाणूनां पुनर्बन्धकारणभूताया: स्रिग्धरूक्षत्वशक्तेरभावादपचारेणापि कायत्वं नास्ति । शक्त्यभावोपि कस्मान? अमर्तत्त्वादिति पंचास्तिकायानां विशेषसंज्ञा अस्तित्वं कायत्वं चोक्तं । अत्र गाथासूत्रेऽनन्तज्ञानादिरूपः शुद्धजीवास्तिकाय एवोपादय इति भावार्थ: ।।४।।
हिन्दी तात्पर्यवृत्ति गाथा-४ अन्वयसहित सामान्यार्थ-( जीवा ) अनंतानंत जीव ( पुग्गलकाया) अनन्तान्त पुद्गलास्तिकाय [ धम्माधम्मा] एक धर्मास्तिकाय एक अधर्मास्तिकाय ( तहेव ) तैसे ही (आयासं) एक अखंड आकाश-ये सब [ अस्थितम्हि ] अपने अस्तित्वमें या अपनी सत्तामें [णियदा ] निश्चित हैं (य) और [अणण्णमइया ] अपनी सत्ता से अपृथग्भूत हैं या एकमेक हैं, और [ अणुमहंता] प्रदेशोंमें अनेक हैं या बहु प्रदेशी हैं।
विशेषार्थ-सत्ताके दो भेद हैं-एक सत्तासामान्य या महासत्ता, दूसरे सत्ताविशेष या अवान्तरसत्ता । ये जीवादि पांचों अस्तिकाय इन दोनों प्रकारकी सत्तामें स्थित हैं सो इस तरह नहीं हैं जैसे एक कुंडी में बेर फल अलग अलग हो किंतु वे पाँचों अपनी अपनी सत्तासे एकमेक या अनन्य हैं । जैसे घटमें रूपादि व्यापक हैं या शरीरमें हाथ-पग आदि हैं या खंभेमें उसका सार या गूदा है। इस कथनसे यह दिखाया कि आधार और आधेयके बिना भी सत्ताका इनके साथ एकमेकपना कहा जाता है । अणुसे जानने योग्य प्रदेश होता है इसलिये यहाँ अणुशब्दसे प्रदेश लेना चाहिये, सो ये पाँचों ही द्रव्य या अस्तिकाय अपने प्रदेशों की अपेक्षा बड़े हैं अतः अणुमहन्त; हैं । दो अणुक स्कन्ध दो अणुओं के द्वारा महान्