Book Title: Panchastikay
Author(s): Kundkundacharya, Shreelal Jain Vyakaranshastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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पंचास्तिकाय प्राभृत
अत एव तेषामस्तिकायप्रकरणे सतामप्यनुपादानमिति । । ४ । । हिन्दी समय व्याख्या गाथा - ४
अन्वयार्थ - ( जीवाः ) जीव, ( पुद्गलकायाः ) पुलकाय, ( धर्माधर्मौ ) धर्म, अधर्म, ( तथा एवं ) तथा ( आकाशम् ) आकाश ( अस्तित्वे नियता: ) अस्तित्वमें नियत (अनन्यमयाः ) ( अस्तित्व से ) अनन्यमय [ ] और ( अणुमहान्तः ) अणुमहान् ( प्रदेशमें बड़े ) हैं ।
टीका – यहाँ ( इस गाथा में ) पाँच अस्तिकायोंकी विशेषसंज्ञा, सामान्य- विशेष - अस्तित्व तथा कार्यत्व कहा है।
वहाँ जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और आकाश - ग्रह उनकी विशेष संज्ञाएँ अन्वर्थं जानना । वे उत्पाद - व्यय, ध्रौव्यमयी सामान्यविशेषसत्तामें नियत व्यवस्थित ( निश्चित विद्यमान } होनेसे उनके सामान्यविशेष-- अस्तित्व भी हैं ऐसा निश्चित करना चाहिये। वे अस्तित्व में नियत होने पर भी अस्तित्वसे अन्यमय नहीं हैं, क्योंकि सदैव अनन्यमयपनेसे उनकी निष्पत्ति है "अस्तित्व से अनन्यमय' होने पर भी उनका "अस्तित्वमें नियतपना" नयप्रयोग हैं। भगवानने दो नय कहे हैं- द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक। वहाँ कथन एक नयके आधीन नहीं होता किन्तु दो नयोंके आधीन होता है। इसलिये वे पर्यायार्थिक कथनसे जो अपने से कथंचित् भिन्न भी हैं ऐसे अस्तित्वमें व्यवस्थित ( निश्चित स्थित ) हैं और द्रव्यार्थिक कथनसे स्वयमेव सत् ( विद्यमान ) होने के कारण अस्तित्वसे अनन्यमय हैं ।
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उनके कायपना भी हैं, क्योंकि वे अणुमहान् हैं। यहाँ अणु अर्थात् प्रदेश मूर्त और अमूर्त निर्विभाग [ छोटेसे छोटे ] अंश, 'उनके द्वारा ( बहु प्रदेशों द्वारा ) महान् हो' वह अणुमहान, अर्थात् प्रदेशप्रचयात्मक ( प्रदेशोंके समूहमय ) हो वह अणुमहान् हैं । इस प्रकार उन्हें ( उपरोक्त पाँच द्रव्योंके ) कायत्व सिद्ध हुआ । [ ऊपर जो अणुमहान्की व्युत्पत्ति की उसमें अणुओं के अर्थात् प्रदेशोंके लिये बहुवचन का उपयोग किया है और संस्कृत भाषा के नियमानुसार बहुवचनमें द्विवचनका समावेश नहीं होता इसलिये अब व्युत्पत्तिमें किंचित् भाषा परिवर्तन करके द्वि- अणुक स्कन्धों को भी अणुमहान् बतलाकर उनकाकायत्व सिद्ध किया जाता है ] 'दो अणुओं ( दो प्रदेशों ) द्वारा महान् हो' वह अणुमहान् - ऐसी व्युत्पत्तिसे द्वि- अणुक पुद्गलस्कन्धोंको भी। अगुमहानपना होने से ) कायत्व हैं । [ अब, परमाणुओंको अणुमहानपना किस प्रकार है। वह बतलाकर परमाणुओं को भी कायत्व सिद्ध किया जाता है ] व्यक्ति और शक्तिरूपसे अणु तथा महान् होनेसे ( अर्थात् परमाणु व्यक्तिरूपसे एकप्रदेशी तथा शक्तिरूपसे अनेकप्रदेशी होनेके कारण ) परमाणुओंको भी उनके एकप्रदेशात्मकपना होने पर भी ( अणुमहानपना सिद्ध होने से ) कायत्व सिद्ध होता है । कालाणुओंको व्यक्ति अपेक्षासे तथा शक्ति अपेक्षा से प्रदेशत्रचयात्मक महानपने का अभाव होने से, यद्यपि वे अस्तित्वमें नियत हैं तथापि, उनके