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है। कारण (१) गिरनार-शिलालेख से उसका सर्वाधिक साम्य है । निषेधात्मक कारण देते हुए फ्रैंक ने कहा है कि पालि उत्तर भारत के पूर्वी भाग की भाषा नहीं हो सकती, उत्तर-पश्चिमी भाग के खरोष्ट्री लेखों से भी उसकी समानताएँ और असमानताएं दोनों हैं, इसी प्रकार दक्षिण के लेखों की भाषा से भी उसकी विभिन्नता है। अधिकतर उसका साम्य मध्य-देश के पश्चिमी भाग के लेखों से है, यद्यपि यहाँ भी कुछ असमानताएँ हैं। अतः पालि भाषा का उद्गम-स्थान 'विन्ध्य के मध्य और पच्छिमी भाग का प्रदेश' है।
(५) स्टैन कोनो५----विन्ध्य-प्रदेश पालि-भाषा का उद्गम-स्थान है। कारण (१) पैशाची प्राकृत से पालि का अधिक साम्य है । (२) पैशाची प्राकृत विन्ध्य-प्रदेश में उज्जयिनी के आसपास बोली जाती थी। यहाँ यह स्मरण रखना आवश्यक होगा कि पैशाची प्राकृत-सम्बन्धी स्टैन कोनो का यह मत प्रसिद्ध भाषातत्वविद् ग्रियर्सन के मत से नहीं मिलता, जिसके अनुसार पैशाची प्राकृत केकय और पूर्वी गान्धार की बोली थी। ग्रियर्सन का मत ही अधिक युक्तियुक्त माना गया है।
(६) डा० ओल्डनबर्ग पालि कलिग देश की भाषा थी। कारण (१) लंका के पड़ोसी होने के कारण कलिंग से ही लंका में धर्मोपदेश का कार्य शताब्दियों के अन्दर सम्पादित किया गया। (२) खंडगिरि के शिलालेख से पालि का अधिक साम्य है । ओल्डनबर्ग के मत को समझने के लिये यह जानना आवश्यक होगा कि महेन्द्र द्वारा लंका में बुद्ध-धर्म के प्रचार की बात को ओल्डनबर्ग ने ऐतिहासिक तथ्य नहीं माना है। उनके मतानुसार कलिंग के निवासियों ने लंका में बुद्ध-धर्म का प्रचार किया और इसमें कई शताब्दियाँ लगीं।
(७) ई० मुलर२--कलिंग ही पालि का उद्गम-स्थान है। कारण, यहीं से सब से पहले लोगों का लंका में जाकर बसना और धर्म प्रचार करना अधिक संगत है।
आगे के मतों का निर्देश करने के पूर्व उपर्युक्त मतों की कुछ समीक्षा कर लेना आवश्यक होगा। इन मव मनों में मव मे मुख्य बात यह है कि ये सभी मत
१. विनय-पिटक (डा० ओल्डनबर्ग द्वारा रोमन अक्षरों में सम्पादित) जिल्द
पहली, पृष्ठ १-५६ (भूमिका) २. सिम्पलीफाइड ग्रामर ऑव दि पालि लेग्वेज, पृष्ठ ३ (भूमिका)