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जायेगा। (स्व. अक्षयकुमार जैन, सम्पादक 'नवभारत टाइम्स').
अन्त में स्व. डा. श्री हरिहर निवास द्विवेदी के शब्दों को दुहराकर विषय को विराम दूंगा :
"भारतीय इतिहास को लिखते समय जैन इतिहास को अगर ध्यान में रखा गया होता तो हम एक गलत इतिहास को नहीं पढ़ते। परन्तु अब समय काफी गुजर गया और वह इतिहास अब हमारे हृदय पटल पर इतना पैठ गया है कि उसे हटाने में अब काफी समय लगेगा।
इससे इतिहास की महत्ता पर प्रकाश तो पड़ता ही है, साथ ही इतिहास न लिखना कितना खतरनाक हो सकता है यह स्पष्ट है। पद्मावती पुरवाल समाज का इतिहास इसी भावना के साथ लिखा जा रहा है।
एक चरन हूं नित पढ़े, तो काटै अज्ञान। पनिहारी की लेज सों, सुखदा शीतल छाय ॥ सेवत फल भासे न तौ, छाया तो रह जाय। पर उपदेश करन निपुन, ते तौर लखै अनेक ॥ पर उपदेश करन निपुन, ते तो लखै अनेक। करै समिक बोले समिक, ते हजार में एक ॥ विपताको धन राखिये, धन दीजे राखि दार। आतम हितको छोड़िए, धन, दारा परिवार ।
-भूधरदास
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पद्यावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास