________________
१२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टोका सहित--अर्जुन शब्द
हिन्दी टीका-अर्जुन शब्द पुलिंग है और उसके पांच अर्थ होते हैं। १. मयूर (मोर) २. कातवीर्यार्जुन (सहस्रबाहु) ३. सित (सफेद रंग) ४. मध्यम पाण्डव (अर्जुन) जो कि माता कुन्ती का एक पुत्र (वीर पुत्र) कहा जाता है । और ५. द्रमान्तर (अर्जुन नाम का वृक्ष विशेष) (धववृक्ष)। इसी प्रकार अर्थ शब्द पुंलिंग है और उसके ६ अर्थ होते हैं-१. प्रयोजन (उद्देश्य निमित्त) २. वित्त (धन) ३. वाच्य (शब्दार्थअभिधेय) ४. विषय ५. वस्तु, ६. निवृत्ति, ७. याचना और ८. प्रकार (भेद-विशेषण) एवं ६. कारण (हेतु, निमित्त । इस तरह अर्जुन शब्द के पांच और अर्थ शब्द के ६ अर्थ समझना चाहिये - मूल : अर्थी सहाये धनिके विवादिनि च याचके ।
सेवकेऽपि बुधैः प्रोक्त: प्रयोजनवति त्रिषु ॥ ५५ ॥ हिन्दी टीका-अर्थी शब्द के ६ अर्थ होते हैं- उनमें १. सहाय, २. धनिक, ३. विवादी और ४. याचक एवं ५. सेवक इन पाँच अर्थों में पुल्लिग है और ६. प्रयोजनवान् (प्रयोजन वाला) इस छ8 अर्थ में तीनों ही लिंग में प्रयुक्त होता है क्योंकि पुरुष स्त्रो नपुंसक सभी में याचक होते हैं। मूल : याचने पीडने गत्यां हनने गमनेऽर्दनम् ।
अर्द्धचन्द्रश्चन्द्रखण्डे गलहस्ते नखक्षते ॥ ५६ ॥ पुमान् वाणविशेषेऽपि चन्द्रकेऽपि प्रयुज्यते ।
अर्भक: सदृशे स्वल्पे शिशौ मूर्खे कृशे पुमान् ॥ ५७ ॥ हिन्दी टीका-अर्दन शब्द नपुंसक है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. याचन (माँगना) २. पोडन (सताना) ३. गति (जाना-गमन करना) ४. हनन (मारना) ५. गमन (जाना) इस प्रकार अर्दन शब्द का पांच अर्थ समझना चाहिये अर्धचन्द्र शब्द पुलिंग है और उसके ५ अर्थ होते हैं - १. चन्द्रखण्ड (चन्द्रमा का आधा भाग) २. गलहस्त (गला पर हाथ देकर बाहर निकालना) ३. नखक्षत (नाखून से क्षत करना) इसी प्रकार अर्धचन्द्र शब्द का ४. वाण विशेष भी अर्थ है जोकि अर्धचन्द्र के समान होता है, एवं ५. चन्द्रक (अर्धचन्द्राकार रजत तांबा वगैरह का बना हुआ यन्त्र विशेष) । अर्भक शब्द पुंलिंग है और उसके भी पांच अर्थ होते है-१. सदृश (सरखा) २. स्वल्प (लेश मात्र) ३. शिशु (बच्चा) ४. मूर्ख, ५. कृश (पतला) इस प्रकार अर्दन शब्द का पाँच अर्धचन्द्र का ५ एवं अर्भक शब्द का भी ५ अर्थ समझना चाहिए । मूल : अर्हः पुरन्दरे पुंसि त्रिषु योग्योपयुक्तयोः ।
अलमत्यर्थपर्याप्त - निरर्थकनिवारणे ॥ ५८ ॥ शक्तिभूषणयोरेतदव्ययं विदुषां मतम् ।
अलिः स्त्रीपुंसयो: काके वृश्चिके भ्रमरे पिके ॥ ५६ ।। हिन्दी टीका-पुंलिंग अर्ह शब्द का १. पुरन्दर (इन्द्र) अर्थ होता है और २. योग्य एवं ३. उपयुक्त (युक्त-लायक) अर्थों में अर्ह शब्द त्रिलिंग माना जाता है। नपुंसक अलम् शब्द के चार अर्थ होते हैं१. अत्यर्थ (अत्यन्त) २. पर्याप्त (पुष्कल-समर्थ) ३. निरर्थक (फजूल व्यर्थ) ४. निवारण (हटाना) किन्तु ५. शक्ति और ६. भूषण (अलंकार-जेबर) इन दोनों अर्थों में 'अलम्' यह अव्यय माना जाता है। इसी प्रकार अलि शब्द पुल्लिग और स्त्रीलिंग है और उसका चार अर्थ होता है-१. काक (कौवा) २. वृश्चिक बिच्छ और वृश्चिक राशि) ३. भ्रमर (भौंरा) और ५. पिक (कोयल) को भी अलि कहते हैं। इस तरह अर्ह शब्द का तोन अलम् शब्द का छह और अलि शब्द का चार अर्थ समझना चाहिये।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org