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नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - अरिष्ट शब्द | ११
हिन्दी टीका - मनीषियों ने १. शुभ (मंगल-कल्याण) और २. प्रसूतिका गृह (प्रसूति का घर ) इन दोनों अर्थों में अरिष्ट शब्द को नपुंसक कहा है किन्तु १. लशुन, २. वायस (काक - कौवा) और ३. वृषभासुर (राक्षस विशेष) इन तीन अर्थों में अरिष्ट शब्द पुल्लिंग ही माना जाता है । इसी प्रकार १. निम्ब (नीम का झाड़) २. फेनिल वृक्ष (रीठा जिससे ऊनी वस्त्र धोया जाता है) । तथा २. मद्यविशेष ( शराबआसव) और ४. कङ्कपक्षी ( कङ्क नाम का पक्षी विशेष) इन तीन अर्थों में भी अरिष्ट शब्द पुल्लिंग ही माना जाता है। इसी तरह ५. अरिष्टनेमि (बाइसवाँ तीर्थङ्कर भगवान् ) के लिए प्रयुक्त अरिष्ट शब्द पुल्लिंग ही माना जाता है । इस प्रकार अरिष्ट शब्द के अनेक अर्थ हैं ।
मूल :
अरुणो भास्करेऽनूरौ कुष्ठभेदेऽर्कपादपे । सन्ध्यारागेऽव्यक्तरागे पुन्नागे कपिले गुडे ॥ ४६ ॥ अरुणाऽतिविषा- गुञ्जा - मञ्जिष्ठा त्रिवृतासु च । अलंबुषेन्द्रवारुण्योः श्यामायामपि कीर्तिता ।। ५० ।।
हिन्दी टीका - पुंल्लिंग अरुण के ९ अर्थ होते हैं - १. भास्कर (सूर्य) २. अनुरू ( सूर्य का सारथी ) जिसको उरु = जंघा नहीं हो उसे अनुरू कहते हैं ( सूर्य के सारथि को जंघा नहीं थी कट गई थी इसीलिए सूर्य सारथि को अनुरू कहते हैं) । ३. कुष्ठविशेष ( लाल वर्ण का कुष्ठ) ४. अर्कपादप ( औंक का वृक्ष ) ५. सन्ध्याराग (सायंकालीन सूर्य की रक्तिमा ) ६. अव्यक्तराग - - (किञ्चिन्मात्र रक्तिमा) ७. पुन्नाग केसर ) ८. कपिल (भूरा रंग) और ६. गुड, इस प्रकार अरुण शब्द के नौ अर्थ हैं । स्त्रीलिङ्ग अरुणा शब्द के आठ अर्थ होते हैं -- -- १. अतिविषा (मेंहदी ) २. गुडजा २. मञ्जिष्ठा ( मजीठा ) ४. त्रिवृता ५. अलम्बुष ६. इन्द्र वारुणी (शराब विशेष) और ७. श्यामा (भगवती) को भी अरुणा शब्द से प्रयोग करते हैं । इस तरह अरुण के और अरुणा शब्द के ७ सात अर्थ माने जाते हैं । इनमें कुछ योगरूढ़ और कुछ रूढ़ शब्द है ।
मूल :
अरोको दीप्ति रहिते रन्धहीने त्रिलिंगकः ।
अर्कः पुरन्दरे ताम्र े पण्डिते ज्येष्ठ भ्रातर्यर्कवृक्षे निर्यासे
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स्फटिकेरवी ॥५१॥ रविवासरे ।
अर्घः पूजाविधौ मूल्येऽर्चिष्मान् वैश्वानरे रवौ ॥५२॥
हिन्दी टीका–अरोक शब्द दीप्तिरहित और रन्ध्रहीन (छेद रहित ) अर्थ में त्रिलिङ्ग (पुंलिंग स्त्रीलिंग और नपुंसक) माना जाता है और अर्क शब्द पुंलिंग है और उसके अर्थ होते हैं - १. पुरम्बर (इन्द्र) २. ताम्र (ताम्र धातु विशेष ताम्बा ) ३. पण्डित (विद्वान् ) ४. स्फटिक और ५. रबि (सूर्य) एवं ६. ज्येष्ठ भ्राता (बड़ा भाई) ७. अकंवृक्ष (ओंक का वृक्ष ) ८. निर्यास (लस्सा गोंद) और ६. रविवासर (रविवार) । इसी प्रकार अर्ध शब्द भी पुंलिंग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं - १. पूजाविधि ( पूजा सामग्री, जल चन्दन पुष्पादि ) २. मूल्य (कीमत ) ३ अचिर्मान् (तेजस्वो) ४. वंश्वानर ( अग्नि विशेष ) और ४. रवि (सूर्य) इस तरह अरोक शब्द के दो और अकं शब्द के ६ एवं अर्ध शब्द के ५ अर्थ जानना चाहिए ।
मूल :
अर्जुनस्तु मयूरे स्यात् कार्तवीर्यार्जुने सिते । मध्यमे पाण्डवे मातुरेकपुत्रे द्रुमान्तरे ॥ ५३ ॥ अर्थः प्रयोजने वित्ते वाच्ये विषयवस्तुनोः । निवृत्तौ याचनायां च प्रकारे कारणेऽपि च ॥ ५४ ॥
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