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मूल :
नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-अज शब्द | | मूल : मेषे माक्षिकधातौ च जन्महीने त्वसौ त्रिषु ॥
हिन्दी टीका- १. मेष (भेड़ा-घेटा) को भी अज कहते हैं यहाँ मेष यह उपलक्षण है-बकरा भी मेष शब्द से लिया जाता है, क्योंकि वास्तव में वकरे को भी अज कहते हैं। इसी प्रकार माक्षिकधातु (मधु) को भी अज कहते हैं । किन्तु जन्महीन (जन्मरहित) अर्थ में अज शब्द त्रिलिंग माना जाता क्योंकि जन्म नहीं लेने वाले भी पुरुष, स्त्री, नपुंसक साधारण सभी को अज कह सकते हैं । इस तरह अज शब्द के आठ अर्थ हुए
अपवर्गः कर्मफले क्रियान्ते त्याग - मोक्षयोः ॥३७॥
क्रियावसानसाफल्ये पूर्णतायामपि स्मृतः । हिन्दी टीका-अपवर्ग शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ होते हैं - जैसे-१. कर्मफल (उन्नति या अवनति, सुख या दुःख वगैरह) २. क्रियान्त (क्रिया की समाप्ति) ३. त्याग, ४. मोक्ष (मुक्ति) ५. क्रिया ऽवसान (क्रिया का अवसान (अन्त) ६. साफल्य (सफलता-फल प्राप्ति) और ७. पूर्णता (सम्पन्नता) इस प्रकार अपवर्ग शब्द के ७ सात अर्थ समझना चाहिये। मूल : अपवादस्तु विश्वासे निदेशे गर्हणे तथा ॥३८॥
विशेषे बाधकेऽपष्ठु विपरीते च शोभने ।
अथापसर्जनं दाने परित्यागे ऽपवर्गके ॥३६।। हिन्दी टीका-अपवाद शब्द पुंलिंग है और उसके ८ आठ अर्थ होते हैं-जैसे-१. विश्वास (यकीन) २. निदेश (आदेश, आज्ञा हुकूमत) तथा एवम् ३. गर्हण (निन्दा) ४. विशेष (असाधारण) ५ बाधक (बाधा करने वाला) और ६. अपष्ठ (खराब) ७. विपरीत (उलटा परिणाम) को भी अपवाद कहते हैं। ८. शोभन (अच्छा) को भी अपवाद कहते हैं। और अपसर्जन शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. दान २. परित्याग, ३. अपवर्ग (छुटकारा पाना) इस प्रकार अपवाद शब्द के ८ आठ और अपसर्जन शब्द के तीन अर्थ समझना चाहिए ।। ३६ ॥ मूल : अमृता तुलसी दूर्वा-पिप्पली मदिरासु च ।
गो-रक्ष - दुग्धाऽतिविषाऽभया-रक्तत्रिवृत्स्वपि ॥ ४० ॥ हिन्दो टोका-अमृता शब्द स्त्री-लिंग है और उसके दश अर्थ होते हैं जैसे-१. तुलसी, २. दूर्वा (दुब) ३. पिप्पली (पीपर) ४. मदिरा (आसव-शराब) ५. गो (गाय) ६. रक्षा (रक्षा करना) ७. दुग्ध (दूध) ८. अतिविषा (आमलकी-धात्री) ६. अभया (हरीतकी) और १० अरक्तत्रिवृत् (इलाइची) अथवा 'गोरक्ष दुग्धा' यह एक ही शब्द गुडूची (गिलोय) का वाचक है अर्थात गुडूची को भी अमृता कहते हैं इसलिये गोरक्ष दुग्धा शब्द से गुडूची (गिलोय) ली जाती है उसका अर्थ-गो की तरह रक्षा करने वाली, यह दूध के समान देखने में सफेद ही होती है ॥ ४० ॥ मूल : अम्बरम् वस्त्र आकाशे कासे गिरिजामले ।
अम्बरीषः शिवे विष्णौ भास्करे नरकान्तरे ॥ ४१ ।। अनुतापे किशोरेऽपि सूर्यवंश्यनृपे पुमान् ।
क्लीबं भर्जनपात्रेस्यात्संग्रामेऽपि प्रकीर्तितः ॥ ४२ ॥ हिन्दी टोका-अम्बर शब्द नपंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं जैसे-१. वस्त्र (कपड़ा)
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