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८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टीका सहित-अपध्वस्त शब्द मूल :
चूर्णीकृते परित्यक्तेऽपध्वस्तो निन्दिते त्रिषु । शमी-शेफालिका-दुर्गा शङ्खिनीष्वपराजिता ॥३३।। विष्णुक्रान्ता-स्वप्नफला-ह पुष्पेषु च कीर्तिता।
अचलः कीलके शैले पुंस्यकम्पे त्रिषु स्मृतः ॥३४॥ हिन्दी टीका-अपध्वस्त शब्द चूर्णीकृत (चूर्ण किये हुए) अर्थ में और परित्यक्त छोड़ दिये गये) अर्थ में पुल्लिग माना जाता है किन्तु निन्दित अर्थ में त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि निन्दित शब्द का अर्थ (निन्दा के पात्र) होने से उसका विशेषणभूत अपध्वस्त शब्द भी विशेष्यनिघ्न होने से तीनों लिंगों में प्रयुक्त हो सकता है, क्योंकि पुरुष, स्त्री या नपुंसक कोई भी वस्तु निन्दा के पात्र हो सकते हैं, इसलिये उसका विशेषण के रूप में प्रयुक्त अपध्वस्त शब्द भी त्रिलिंग ही समाना चाहिए ॥ ३३ ॥ अपराजिता शब्द स्त्रीलिंग है और उसके मात अर्थ होते हैं -१. शमी (शमी नाम का वृक्ष विशेष), २. शेफालिका (सिंहर हार फूल, मन्दार पुष्प), ३. दुर्गा भगवती को भी अपराजिता कहते हैं क्योंकि वह किसी से भी पराजित नहीं होती। ४. शङ्खिनो नाम के पुष्पविशेष को भी अपराजिता कहते हैं। ५. विष्णुक्रान्ता को भी अपराजिता कहते हैं । ६. स्वप्नफला को भी अपराजिता कहते हैं। ७. इसी प्रकार शणपर्णो पुष्प को भी अपराजिता कहते हैं । इस तरह अपराजिता शब्द के सात अर्थ समझना चाहिए। अचल शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं। उनमें १. कीलक (खील, काटी) अर्थ और २. मैल (पहाड़) अर्थ में पुल्लिग है किन्तु अकम्प (कम्प रहित निष्कम्प) अर्थ में त्रिलिंग है क्योंकि अकम्प शब्द विशेष्य (मुख्यार्थ) वाचक है और उसी का विशेषणभूत अचल शब्द विशेषण होने से विशेष्यनिघ्न होने के कारण त्रिलिंग माना जाता है क्योंकि पुरुष, स्त्री या नपुंसक किसी भी वस्तु में भी अकम्प हो सकता है। इस प्रकार अपराजिता के सात और अचल शब्द के तीन अर्थ समझना चाहिए। मूल : अच्छो निर्मल: भल्लूक-स्फटिकेष्वच्छमव्ययम् ।
अञ्जनं म्रक्षणे व्यक्तीकरणे कज्जले गतौ ।।३५।। हिन्दी टीका-अच्छ शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. निर्मल (मल रहित), २. भल्लक (रीछ, भाल) और ३. स्फटिक (संगमर्मर पत्थर वगैरह)। इसी प्रकार नपंसक अ
अव्यय भी अच्छ शब्द माना गया है उसके भी ऊपर के ही तीन अर्थ होते हैं । अंजन शब्द नपुंसक है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. म्रक्षण (साफ करना) २. व्यक्तीकरण (स्पष्ट करना), ३. कज्जल (काजल) और ४. गति (गम करना) । इस प्रकार अच्छ शब्द के तीन और अंजन शब्द के चार अर्थ समझना चाहिए। अच्छ शब्द निर्मल वाचक त्रिलिंग समझना। मूल : अट्टस्त्वतिशये क्षौमे हट्टे हादिवेश्मनि ।
अजो ब्रह्मणि कन्दर्पे शिवे विष्णौ रघो:सुते ॥३६॥ हिन्दी टीका-अट्ट शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. अतिशय (अत्यधिक), २, क्षोम (रेशम वस्त्र, पट्ट वस्त्र), ३. हट्ट (हाट) और ४. हादिवेश्म (महल-अटारो वगैरह) इसी प्रकार अज शब्द भी पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. ब्रह्म (परमात्मा), २. कन्दर्प (कामदेव), ३. शिव (शङ्कर), ४. विष्णु (नारायण) और ५. रघुपुत्र (राघव, रघु का बालक)। इस प्रकार अट्ट शब्द के चार और अज शब्द के पांच अर्थ समझना चाहिए। (न जायते इति अजः) यह अज शब्द की व्युत्पत्ति है । तदनुसार बाद में कहना चाहते हैं।
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