________________
१० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-अये शब्द २. माकाश, ३ कास (कपास-रुई) और ४. गिरिजामल (अभ्रख)। अम्बरीष शब्द पुल्लिग है और उसके ६ अर्थ होते हैं जैसे-१. शिव (शंकर) २. विष्णु (नारायण) ३. भास्कर (सूर्य) ४. नरकान्तर (नरक विशेष) ५. अनुताप (पश्चात्ताप-पीछे पछताना) ६. किशोर (बच्चा) ७. सूर्यवंश्यनृप (सूर्य वंशी राजा) इस अर्थ में अम्बरीष शब्द पुंलिंग है किन्तु ८. भर्जनपात्र (भूजने का बर्तन भ्राष्ट्र) अर्थ में और ६. संभ्राम (युद्ध-लड़ाई) अर्थ में नपुंसक लिंग माना जाता है। इस प्रकार अम्बर शब्द के चार और अम्बरीष शब्द के नौ अर्थ समझना चाहिये। मूल :
अये सम्बोधने कोपे विषादे संभ्रमे स्मृतौ । अयोगो विधुरे कूटे विश्लेषे कठिनोधमे ॥ ४३ ॥ अयनं गमने शास्त्रे सूर्यसंक्रमणान्तरे ।
सूर्यगत्यन्तरे मार्गेऽनुनय - प्रश्नयोरपि ॥ ४४ ॥ हिन्दी टोका-'अये' यह अव्यय शब्द है और इसके पाँच अर्थ होते हैं- १. सम्बोधन (अपनी तरफ बुलाना) २. कोप (गुस्सा) ३. विषाद (ग्लानि) ४. संभ्रम (भयजन्य त्वरा-जल्द बाजी) और ५. स्मृति (स्मरण याद करना)। अयोग शब्द पुल्लिग है और इसके चार अर्थ होते हैं -१. विधुर (विरही-विछुड़ा हुआ) २. कूट (घन, पहाड़ की चोटी रहस्य ३. विश्लेष (विछराव-वियोग) और कठिनोद्यम (घोर परिश्रम) (कठिन उद्योग) ॥ ४३ । 'अयन' शब्द नपुंसक है और उसके सात अर्थ होते हैं-१. गमन (जाना) २. शास्त्र ।. सूर्यसंक्रम (सूर्य का संक्रमण विशेष; एक राशि से दूसरे राशि में जाना) ४. सूर्यगत्यन्तर (सूर्य की गति विशेष) ५. मार्ग (राम्ता) ६. अनुनय (खुशामद करना) और ७. प्रश्न (पूछना, प्रश्न करना) इस प्रकार 'अये' शब्द के चार और अयोग शब्द के भी चार एवं अयन शब्द सात अर्थ समझना चाहिये। मूल : अरः पुमान् कालचक्रद्वादशांशे जिनान्तरे।
अरं नपुंसके शीघ्र चक्राँगे शीघ्रगे त्रिषु ॥ ४५ ॥ अरिः पुमान् स्मृतश्चक्र विपक्षे खदिरान्तरे। अरिष्टमशुभे
मृत्युचिन्होपद्र वयोरपि ।। ४६ ।। हिन्दी टीका-अर शब्द १. काल (समय) २. चक्र ३. द्वादशांश (बारहवाँ भाग) और ४. जिनान्तर (तीर्थकर विशेष) इन चार अर्थों में पुंलिंग है किन्तु -१. शीघ्र. २. चक्रांग (गाड़ी के पहिये का आरा)
और ३. शीघ्रग (जल्दी से जाने वाला) इन तीन अर्थों में अर शब्द नपंसकही माना जाता है। इसी प्रकार अरि शब्द भी १. चक्र २. विपक्ष (शत्रु) और ३. खदिरान्तर (कत्था विशेष) इन तीन अर्थों में पुल्लिग माना जाता है किन्तु १ अशुभ (अमंगल-अकल्याण) २. मृत्युचिन्ह (मरण सूचक चिन्ह विशेष) और ३. उपद्रव इन तीन अर्थों में नपुंसक ही माना जाता है। इस तरह अर शब्द के सात और अरि शब्द के छह अर्थ जानना चाहिये ॥
शुभे प्रसूतिकागेहे क्लीबमुक्त मनीषिभिः । अरिष्ट: पुंसि लशुने वायसे वृषभासुरे ॥ ४७ ॥ निम्बे फेनिलवृक्षे मद्यभेदे कङ्कपक्षिणि । अरिष्टनेमि-विशे तीर्थङ्करजिने पुमान् ॥ १८ ॥
मूल :
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org