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पचपुराण
समाचन्द मुनि को भी प्राचार्य रविषेण कृत संस्कृत भाषा के पमपुराण को सुनने की रुचि पैदा हुई। पद्मपुराण को मुन कर मुनिश्ची के हृदय में प्राचार्य रविषेरण के प्रति गहरी ससा मागत । अनी नानासा ने राम में इन्होंने गविगाचार्य के प्रति जो श्रद्धा एवं भक्ति प्रदशित की है वह अत्यधिक संबेदनशील है । उन्होंने रविषेणाचार्य को मति श्रुति एवं अवधि ज्ञान का धारक महामुनीश्वर निग्रंथाचार्य एवं कोष मान माया प्यादि कषानों मे रहित होना लिखा है 1 इन्हीं भात्रों को कत्रि के शब्दों में देखिये.-.
केवल वाणी सुन्यो यखान, पंडित मुनिघर रच्या पुराण । प्राचार्य रविषेण महत, संस्कृत मैं कीनौ अन्य ॥३०॥ महा मुनीश्वर ग्यांनी गुनी, मति अति अवधि ग्योती मुमौ ।। महा मिनप्रसपस्वी अहि, कोष भाव माया मही रती ॥३॥ प्रारिषो वाणी शास्त्र किया, घमं उपदेश यहुविध दिया । जिसके मेवा भेद अपार, महामुमोस्पर कई विचार ।।३।।
प्राचार्य रत्रिषेण के पद्मपुराण को सुनने एवं उसका स्वाध्याय करने के पश्चाव मुनि समाचन्द के हृदय में उसके हिदी रूपान्नर करने के मात्र जाग्रत ये और उन्होंने संवत १७११ में फाल्गुन एकदा पवमी को हिन्दी में पद्मपुराण जैसे महान ग्रंथ को छन्दोबद्ध करने का यशस्वी कार्य कर डाला ।
.संवत्त सनहस ग्यारह वरस, मुन्यां भेद जिनवाणी सरस । फाल्गुन मास पंचमी स्वेत, गुरुवार मन में धरि हेत ।।३३।। सभाषद मुनि भया प्रानन्द, भाषा करि चौपई छुन्छ । सुनि पुरान कोनां मंडान गुमि जम लोक सुनु दे कान ॥३४॥
सर्व प्रथम गौतम रवामी ने राम कथा को सबको सुनायी। उसके पश्चात् अगसेन के बली ने इसे मौखिक रूप से कहा । फिर कृतांतसेन ने एक करोड़ परनोक प्रमाण ग्रंथ निन किया । इसके पश्चात दूसरे प्राचार्यों ने पुराणो की रचना करके उन्हें पला । उनके सबदन गुनि शिष्य हुए । फिर अरहसेन एवं लदमनसेन मुनि हुए जिन्होने साठ हजार श्लोक प्रमागा पद्मपुराण लिखा । उसी पुराण को प्राचार्य रविषेण ने नारन हजार श्लोक प्रमागा पद्मपुराण नाम सेनिबद्ध किया । कवि ने इनका रचना काल का निम्न प्रकार वर्णन किया हैं
सहैव एक प्रक दोई से धरस, छह महीने बीते कध, सरस । महावीर निरवारण कल्याण, इस अंतर है रया पुराण ।।