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के विरूद्ध सहायता मांगने के लिए पहुंचते हैं। हनुमान लंका जाते हैं और सीता को सांत्वना देकर लौटते हैं ( लंका दहन का कोई उल्लेख नहीं मिलता) इसके बाद लक्ष्मण द्वारा बालि का वध होता है और सुग्रीव अपने राज्य पर अधिकार प्राप्त करता है । भव वानरों की सेना राम की सेना के साथ लंका की ओर प्रस्थान करती है । युद्ध के विस्तृत वर्णन के अन्त में लक्ष्मण चक्र से रावण का सिर काट देते हैं । इसके बाद लक्ष्मण दिविजय करके और श्री नारायण बनकर प्रयोध्या लौट हैं। लक्ष्मण की सोलह हजार रानियां और राम की आठ हजार रानियां है | सोता के आठ पुत्र होते है सीता स्थान का उल्लेख नहीं मिलता) एक असाध्य रोग से मर कर शव जय के कारण नरक में जाते हैं। राम लक्ष्मण के पृथ्वी सुन्दर को राज पद पर और सीता के पुत्र अजीसंजय को युवराज पद पर अभिषिक्त करके दीक्षा लेते हैं और मुक्ति पाते हैं। सीवा भी अनेक रानियों के साथ दीक्षा लेती है और घच्युत स्वयं में जाती है।
प्रस्तावना
हिन्दी में राम काव्य ---
प्राकृत संस्कृत एवं अपनों के पश्चात् जब हि राजस्थानी में ग्रन्थ रचना होने लगी तो जैन कवियों द्वारा इन भाषाओं में सभी तरह के ग्रन्थों का गद्य एवं पद्म में लिया जाने लगा या फिर सुन ग्रंथा के भावों को लेकर स्वतंत्र रूप से भी काव्य लिखे गये। हिन्दी - राजस्थानी में रामकथा को काव्य रूप में निबद्ध करने का सर्व प्रथम श्रेय महावात्रि ब्रह्मजिनदास को दिया जा सकता है क्योंकि उन्होंने संवत् १५०८ में ही विशाल काव्य 'रामराम' को रचना करने का गौरव प्राप्त किया । ' रामराय यद्यपि रविपेखांचार्य के पुरा के आधार पर न किया गया है लेकिन वह कवि की मौलिक एवं स्वतंत्र रचना के रूप में है । संवत् १७२८ में देऊन ग्राम में लिपिबद्ध दम काव्य की एक प्रति छूंगरपुर के भट्टारकीय शास्त्र भण्डार में संग्रहीत है इस पाण्डुलिपि में १२५६" आकार वाले ४०५ पत्र हैं । कवि ने अपने काव्य के रचनाकाल का निम्न गद्य में उल्लेख किया है
संवत पर प्रोत्तरा, ममार मास विशाल । शुक्ल पक्ष चउदिसी दिनी सकियो गुल्माल ॥
पद्मपुराण संरचना
विक्रम की १३ त्रीं शताब्दि के तीयचतुर्थ बरगा में मुनि सभाव हुए । उनके समय में तुलसी का रामचरितमानस (रामाया ) लोकप्रियता प्राप्त करने लगा था और उत्तर भारत की अधिकांश जनता में उसे पढ़ने की ओर ि बच रही थी। नात्र धर्म में फैल रही रामायण के प्रति ग्रासक्ति को देख कर
१. पद्मपुराण भूमिका पृष्ठ संख्या १७-१८