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प्रस्तावना
हैं। जातक के अन्त में महात्मा बुद्ध जातक का सामंजस्य इस प्रकार बठाते हैंउस रामय महाराजा शुद्धोदन महाराज दशरथ थे । महामाया (बुद्ध की माता) राम की माता, यशोधर (राहल की मां) सीता, प्रानन्द भरत थे और मैं राम पण्डित था।''
इसी तरह "अनामक जातकम्" में राम के जीवत वृत्त से सम्बन्धित वस्था मिलती है । चीनी त्रिपिटक के अन्तर्गत "त्सा-पी-त्सिंग-किग मै १२१ अषधामों का संग्रह मिलता है। यह संग्रह ४७२ई. में चीनी भाषा में अनुदित हुमाया इसमें एक 'दशरथ कथानम्' भी मिलता है जिसमें राम कथा का उल्लेख किया गया है। इसकी विशेषता यह है कि इसमें सीता या किसी अन्य राजकुमारी का उस्लेख नहीं हुआ हैं । दशरथ की चार रानियों का वर्णन पाता है उनमें प्रधान महिषी के राम, दूसरी रानी के रामन (रोमरण-लक्ष्मण) तीसरी रानी के भरत और चौथी रानी के शत्रुघ्न उत्पन्न हुये थे ।
प्रद्मुत रामायण में रामकथा का दूसरा ही रूप मिलता है जिसमें सीता को मन्दोदरी द्वारा अपने गर्भ को जमीन में गाड दिए जाने के पश्चात् उत्पन्न हुआ माना गया है जो हल जोतते समय वह गर्भजात कन्या राजा जनक को मिली पोर उन्होंने उसफः लालन पालन किया। लेकिन राम कथा का व्यापक एवं लोकप्रिय रूप बाल्मीकि रामायण का रहा जो सर्वय समादृत है | जैन कथा के दो रूप
जैन साहित्य में रामकथा के जो रूप मिलते हैं उनमें गुणभद्राचार्य द्वारा रचित उत्तरपुराण एवं रविषेण के पद्मफ गाया में सुरक्षित है। दोनों ही प्राचार्य जैनधर्म के अधिकृत विद्वान थे । प्राचार्य रविण ने विक्रम संवत् ७३४ (६७७ ई.) में पद्मपुराण की रचना समाप्त की थी जबकि प्राचार्य गुणभद्र ने ६ वीं शताब्दि के अन्त में उत्तर पुराण की रचना करने का गौरव प्राप्त किया था। इस प्रकार माचार्य रविषेश का पद्मपुराण प्राचार्य गुणभद्र के समक्ष रहा होगा ऐसा अनुमान किया जा सकता है क्योंकि ऐसा महापुराण लिखने वाले प्राचार्य जिनसेन एवं गुणभद्र अपने पूर्वाचार्यो की अधिकृत ग्रंथों को प्रोझल प्रथवा अनदेखा नहीं कर सकते । गुणभद्र आचार्य जिनसेन के शिष्य थे । जिनसेन आदि पुराण की रचना करने से पूर्व ही स्वर्गवासी हो गये इसलिए प्रादिपुराण के अवशिष्ट भाग एवं उत्तरपुर'ण की रचना करने का कार्य उनके सुयोग्य शिष्य गुगभद्र ने ही किया । उनके द्वारा उत्तरपुराण में प्रतिपादित रामकथा प्राचार्य रविषेश से भिन्न है जिनमें सीता को जनका की पत्री न मानकर रावण, मन्दोदरी की पत्री माना है।