Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २२.]
हिदिविहत्तीए कालो ६१. इत्थि० मोह० उक्क० जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमुहुत्तं । अणुक्क० जह० एगसमो, उक्क. सगहिदी । एवं पुरिस ।
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समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त बन जाता है । यही बात वैक्रियिक काययोगमें जानना चाहिये। औदारिक काययोगमें अनुत्कुष्ट स्थितिके उत्कृष्टकालमें कुछ विशेषता है । बातयह है कि औदारिककाययोगका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कम बाईस हजार वर्षप्रमाण है और इतने काल तक जीवके इसमें मोहनीयकी अनुत्कृष्ट स्थिति पाई जाती है, अतः औदारिककाययोगमें अनुत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्ट काल उक्त प्रमाण कहा। औदारिक मिश्रकाययोगके पहले समयमें ही उत्कृष्ट स्थिति हो सकती है अतः औदारिकमिश्रकाययोगमें उत्कृष्ट स्थिति का जघन्य और उत्कृष्टकाल एक समय कहा । पर ऐसा जीव निवृत्यपर्याप्त होगा। इससे सिद्ध हुआ कि लब्ध्यपर्याप्तक औदारिक मिश्रकाययोगीके अनुत्कृष्ट स्थिति ही होती है। अब यदि कोई जीव तीन मोड़ा लेकर एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकोंमें उत्पन्न हो तो उसके खुद्दभिवग्रहणप्रमाण कालमें से तीन समय और कम हो जायेंगे अतः औदा. रिकमिश्रकाययोगमें अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्यकाल तीन समय कम खुद्दाभवग्रहणप्रमाण कहा। तथा इसके अनुत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्टकाल अन्तर्महूर्त होता है यह स्पष्ट ही है। वैक्रियिकमिश्रकाययोगके पहले समयमें ही उत्कृष्ट स्थिति हो सकती है,अतः इसके उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा। तथा उत्कृष्ट स्थितिके इस एक समयको कम कर देने पर जो वैक्रियिकमिश्रका एक समय कम अन्तर्महूर्त काल शेष रहता है वह अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल है। वैक्रियिकमिश्रकाययोगमें अनुत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त होता है यह स्पष्ट ही है । आहारकमिश्रकाययोगी, उपशमसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके भी इसी प्रकार कथन करना चाहिये क्योंकि इनके भी पहले समयमें ही उत्कृष्ट स्थिति सम्भव है, अतः इनके उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय बन जाता है। तथा इस एक समयको कम कर देने पर उक्त मार्गणाओंका जो एक समय कम अन्तर्मुहूर्त प्रमाण काल शेष बचता है वह उनकी अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल है और उत्कृष्टकाल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण अन्तर्महूर्त होता है यह स्पष्ट ही है। आहारककाययोगके पहले समयमें ही उत्कृष्ट स्थिति सम्भव है अतः इसमें उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा। जो जीव एक समय तक आहारक काययोगके साथ रहकर दूसरे समयमें मरणादि निमित्तोंसे अन्य योगको प्राप्त हो जाते हैं उनके अनुत्कष्ट स्थितिका जघन्य काल एक समय पाया जाता है अतः आहारक काययोगमें अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल एक समय कहा। तथा उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त आहारक काययोगके उत्कृष्ट कालकी अपेक्षासे कहा । अपगतवेदी, अकषायी, सूक्ष्मसांपरायिक संयत और यथाख्यातसंयत इन मार्गणाओंकी स्थिति आहारक काययोगके समान . है अतः इनमें उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका काल आहारककाय योगके समान कहा । कार्मणकाय योगके पहले समयमें उत्कृष्ट स्थिति सम्भव है अतः इसमें भी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय कहा । तथा कार्मणकाययोगका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्टकाल तीन समय है अतः इसमें अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल तीन समय कहा है।
६१. स्त्रीवेदी जीवोंके मोहनीयकी उत्कृष्ट स्थितिका जघन्य सत्त्वकाल एक समय और उत्कृष्ट सत्त्वकाल अन्तमहूर्त है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिका जघन्य सत्त्वकाल एक समय और उत्कृष्ट सत्त्वकाल अपनी स्थितिप्रमाण है। इसी प्रकार पुरुषवेदी जीवोंके कहना चाहिये।
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