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अर्द्धमागधी आगम- साहित्य में अस्तिकाय
है। कोई एक गुण काला, कोई द्विगुण काला आदि होने से भी उनमें भेद होता
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परमाणु की अस्पृशद्गति अद्भुत है । इस गति के कारण परमाणु एक समय में लोक के एक छोर से दूसरे छोर तक पहुँच सकता है । *
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जैन दर्शन के ग्रंथों में आगे चलकर 'अस्तिकाय' के स्थान पर 'द्रव्य' शब्द का ही प्रयोग हो गया तथा वस्तु या सत् की व्याख्या 'द्रव्यपर्यायात्मक' स्वरूप से की जाने लगी। किन्तु आगमों में अस्तिकाय एवं द्रव्य के स्वरूप में भेद रहा है, यह व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र आदि में की गई चर्चा से स्पष्ट है ।
सन्दर्भ:
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1. चउव्विहे लोए वियाहिते : दव्वतो लोए, खेत्तओ लोए, कालओ लोए, भावओ लोए । इसिभासियाइं, जैन विश्व भारती लाडनूँ, अध्ययन 31
2. गोयमा ! पंच अत्थिकाया पण्णत्ता, तं जहा - धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, आगासत्थिकाए, जीवत्थिकाए, पोग्गलत्थिकाए । - व्याख्याप्रज्ञप्ति, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, शतक 2, उद्देशक 10 सूत्र 1
3. से किं तं दव्वणामे? दव्वणामे छव्विहे पण्णत्ते, तंजहा - धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, आगासत्थिकाए, जीवत्थिकाए, पोग्गलत्थिकाए अद्धासमए य। - अनुयोगद्वारसूत्र, आगम प्रकाशन समिति ब्यावर, सूत्र - 218
4. श्रीस्थानाङ्गसूत्रम्, अभयदेवसूरिवृत्तिविभूषित, भाग - 2, श्री जैन आत्मानन्दसभा भावनगर, अध्ययन 4, उद्देशक 1, पृ. 330
5. वही, पृ. 330
6. द्रष्टव्य, व्याख्याप्रज्ञप्ति, शतक 2, उद्देशक 10, सूत्र 7-8
7. णवरं पएसा अणंता भणियव्वा । - वही
8. वही, सूत्र 2-6
9. अनुयोगद्वार, सूत्र 218
10. व्याख्याप्रज्ञप्ति, शतक 8, उद्देशक 10, सूत्र 23-24
11. स्थानांगसूत्र, स्थान 4, उद्देशक 3
12. व्याख्याप्रज्ञप्ति, शतक 25, उद्देशक 2
13. प्रज्ञापनासूत्र, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, पद 5, सूत्र 500 503