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भी प्रकार का प्रमाद नहीं किया है। आचार्यों के मत भेदों को भी फ़टनोटों द्वारा प्रकट कर दिया है। यथा अवसर जैनधर्म के गून्थों के अतिरिक्त, बौद्धों, वैदिकों, और पौराणिको के मत भी प्रकट किये गए हैं । उदाहरण के लिये पृ० ३८ अक्षरलिपि के तथा इसी प्रकार के अन्य कितने ही नोट दृष्टव्य हैं.. 'ललितविस्तार' (बौद्धप्रन्थ), तथा 'नन्दिसूत्र' (जैन ग्रन्थ) के अनुसार लिपियों के ६४व १८ भेदों की गणना कराके उलसे आगे के नोट में 'ब्राह्यी' लिपि से निकली हुई कोई चालीस से भी अधिक नामों की नामावली अङ्कित करके तथा इसी प्रकार अन्य कितनी ही खोज सम्ब. न्धी बातें लिख कर अन्धेषकों के काम की बहुत सी सामग्री एक ही स्थान पर एकत्रित कर दी है। पृष्ठ २७१ पर अणु शब्द और पृष्ठ २७६ पर अण्डज शब्द की व्याख्या भी खोज से ही सम्बन्ध रखती है।
(४) अङ्कविद्या,और अङ्कगणना-लौकिक तथा अलौकिक गणना-पर प्रभावशाली बड़ी ज़ोरदार बहस करके भारत के प्राचीन गणित गौरव का अच्छा दिग्दर्शन कराया है । इसके साथ ही पृ० ८६ व ८७ की टिप्पणी में सम्पादक ने लीलावती और सिद्धान्त श्रीमणि आदि ग्रन्थों के रचयिता श्री भास्कराचार्य से लगभग ३०० वर्ष पूर्व के श्री महावीर आचार्य रचित एक महत्वपूर्ण 'गणितसार संग्रह' नामक संस्कृत श्लोकबद्ध ग्रन्थ का भी जिसका अङ्गरेज़ी अनुवाद मूल सहित सन् १९१२ ई० में मदरास गवन्मेंट ने प्रकाशित कराया है ज़िक्र किया है (यह ग्रन्थ लेखक की कृपा से हमें भी देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। वास्तव में बड़े ही महत्व का ग्रन्थ है) और उसके मिलने का पता इत्यादि सब कुछ दे दिया है जिससे ज्ञात हो सकता है कि उन्हें अपने पाठकों को लाभ पहुँचाने का कितना ध्यान रहा हैं।
(५) 'अङ्कदिद्या' शब्द की व्याख्याके अन्तर्गत नोटों द्वारा क्षेत्रमान में परमाण से लेकर महास्कंध (त्रैलोक्य रचना या सम्पूर्ण ब्रह्मांड ) तक की माप सूची ( Table ) और कालमान में काल के छोटे से छोटे अंश से लेकर ब्रह्म कल्प से और भी आगे तक की मापसूची बड़ी गवेषणा पूर्ण लिखी गई है जो सर्व ही गणित प्रेमियों के लिये ज्ञातव्य है।
(६) इस में भौगोलिक विषय सम्बन्धी प्राचीन स्थितियों का भी अच्छा विवरण दिया गया है।
(७) जिस प्रकार छन्द शास्त्र में छन्दों की सर्व संख्या, सर्व रूप, इष्टसंख्या, इष्टरूप इत्यादि जानने के लिये ६ या १० प्रकार के प्रत्यय (सूची, प्रस्तार, नष्ट, उद्दिष्ट, आदि हैं उसी प्रकार किसी वस्तु या गुण आदि की संख्या आदि जानने के लिये सूची, प्रस्तार, नष्ट, उद्दिष्ट आदि को 'अजीवगत हिंसा' शब्द की व्याख्यान्तर्गत नोटो द्वारा बड़ी उत्तम रीति से सविस्तार दिया है जो जैनेतर विद्वानों के लिये भी बड़ी ही उपयोगी वस्तु है।
(८) न्याय दर्शनादि अन्य और भी कितने ही विषय ऐसे हैं जो सब ही को लाभ पहुँचा सकेंगे। .. ४. वर्तमान कोष का ऐतिहासिक अंग
यहां तक तो जैन पारिभाषिक शब्द कोष विषयक बात चीत हुई । इसी प्रन्थ का दूसरा अंग इतिहास-कोष है । अब उस पर भी विचार कर लेना चाहिये--
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