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वृहत् जैन शब्दाव
अजीवगत हिंसा
जोड़फल ४ को पञ्चम पिंड की गणना ४ का भाग देने से १ भजनफल प्राप्त हुआ और शेष कुछ नहीं बचा । अतः पञ्चम पिंड में अन्तिम भेद अक्षस्थान है जिस का अक्ष 'संज्वलन' है 1
अतः अब सर्व अक्षों को विलोम क्रम से रख लेने पर 'संवलन-मायावश-अनुमोदित वाचनिक-संम्नजन्य हिंसा, यह ४०० घाँ अभीष्ट आलाप प्राप्त हो गया ॥
२. उद्दिष्ट की विधि-आलाप का नाम ज्ञात होने पर यह जानना हो कि यह आलाप केथां है तो पहिले १ के कल्पित अङ्क को अन्तिम पिंड की गणना से गुण कर गुणनफल में से उस पिंड के अनंकित स्थानों का प्रमाण घटायें । शेष को अन्तिम पिड से पूर्व के पिंड की गणना से गुण कर गुणनफल से इस पिंड के अनंकित स्थानों का प्रमाण घटावें । यही क्रिया करते हुये प्रथम पिंड तक पहुँचने पर और इस प्रथम पिंड) के अनंकित स्थानों का प्रमाण घटाने पर जो संख्या प्राप्त होगी बही संख्या यह बतायेगी कि ज्ञात नाम थव आलाप का नाम है ।
अजीव-निःश्रित की संख्या कुछ नहीं है । अतः शून्य घटाने से शेष ४ को अन्तिम पिंड से पूर्व के पिंड ( क्रोधादि) की गणना ४ से गुणने पर १६ प्राप्त हुआ । इस गुणनफल में से इस पिंड के 'मायावश' अक्ष के आंगे के स्थानों की ( अनङ्कित स्थानों की ) संख्या १ को घटाने से शेष १५ रहे । इस १५ को तीसरे पिंड स्वकृत आदि की गणना ३ से गुणन किया तो ४५ प्राप्त हुए । इस में से इस पिंड के 'अनुमोदित' अक्ष से आगे के अनङ्कित स्थानों की संख्या शून्य को घटाने से ४५ हो रहे । इसे द्वितीय पिंड की गणना ३ से गुणने पर १३५ आये । इस में से 'बाचनिक' अक्ष से आगे के अनङ्कित स्थानों की संख्या १ घटाने से शेष १३४ रहे । इस शेष को प्रथम पिंडकी गणना ३ से गुणने पर ४०२ आये । इस गुणनफल से 'संरम्भजन्य हिंसा' अक्ष से आगे के अनङ्कित स्थानों की संख्या २ घटाने से शेष ४०० रहे। यही अभीष्ट अङ्क है अर्थात् ज्ञात नाम ४०० वाँ आलाप है ।
(गो० जी० गा० ३५ -४४ की व्याख्या) अजीव-तत्त्व - जीवादि सप्त प्रयोजन भूत
इस आलाप में संचलन, मायावश, अनुमोदित, वाचनिक, और संरम्भजन्य हिंसा, यह पांच अक्ष हैं । अब उपर्युक्त विधि के अनुसार कल्पित अङ्क १ को अन्तिम पिंड ( अनन्तानुबन्धी चतुष्क ) की मणना ४ से गुणने पर गुणनफल ४ प्राप्त हुआ । इस गुणनफल में से उसी पिंड के संज्वलन अक्ष
तत्वों में से दूसरा तत्व | ( पीछे देखो शब्द 'अजीव', पृ० १६१ ) ॥ अजीव द्रव्य-द्रव्य के जीव और अजीव, इन दो सामान्य भेदों में से दूसरा भेद । (पीछे देखो शब्द 'अजीव', पृ० १६१.) ॥ अजीव दृष्टिका - अजीव चित्रादि देखने से होने वाला कर्मबन्धः दृष्टिका क्रिया का एक भेद (अ. मा. अजीवदिठिया ) ॥ अजीव-देश- किसी अजीव पदार्थ का एक भाग (अ. मा. अजीवदेस ) ॥
से आगे के स्थानों की अर्थात् अमङ्कित स्थानों भजीव- निःश्रित - अजीव के आश्रय राही
उदाहरण - 'संघलन-मायावश-अनुमोदितवाचनिक-संरम्भअन्य हिंसा', यह जीवगत हिंसा के ४३२ बाळापों में से केथवे आलाप का नाम है ?
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