Book Title: Hindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Author(s): B L Jain
Publisher: B L Jain

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Page 282
________________ ( २१८ ) अञ्जना वृहत् जैन शब्दार्णव अञ्जनात्मा १७ अंगुल, ४४ धनुष २ हाथ१३, अंगुल, | ... मरण या दोनों से शन्य रह सकता है। (त्रि. गा. १४४-२०६, हरि. सर्ग ४) ४६धनुष १० अंगुल,५३ धनुष २ हाथ ६६ (३) घर्मा नामक प्रथम नरक के खर भाग की १६ पृथ्वियों में से ८वीं पृथ्वी अंगुल, ५४ धनुष ३३ अंगुल और ६२ धनुष का नाम भी अञ्जना' है जिसकी मुटाई १००० महायोजन है । ( पीछे देखो शब्द २ हाथ है । अर्थात् पटल पटल प्रति ४ धनुष 'अङ्का', पृ०११४) । र हाथ २०५ अंगुल ऊंचाई बढ़ती गई है। (त्रि. गा. १४७) ((२४ अंगुल का एक हाथ और ४ हाथ का (४) जम्बूवृक्ष के नैऋत्य कोण की एक धनुष होता है)। एक बावड़ी का नाम ( अ. मा.)॥ १३. इस नरक के नारकियों का अध- अंजना चरित-कर्णाटक देशीय प्रसिद्ध धिशान का क्षेत्र ढाई क्रोश तक का है। और | जैनकवि 'शिशुमायण' कृत एक चरित लेश्या नील है। प्रन्थ जिसमें पवनञ्जय की स्त्री 'अञ्ज१४. इस नरकका नारकी वहां की आयु नासुन्दरी' का चरित वर्णित है॥ पूर्ण होने पर तीर्थङ्कर, चक्री, बलभद्र, नारा- इस चरित प्रन्थ की रचना कधि ने यण,प्रतिनारायण, इन पदों के अतिरिक्त अन्य बेलुकेरेपुर के राजा गुम्मटदेव की रुचि कोई कर्मभूमिज संशी पंचेन्द्रिय पर्याप्त गर्भज और प्रेरणा से की थी। इस कवि रचित मनुष्य या तिर्यञ्च ही होता है । अन्य भेद एक अन्य प्रन्थ 'त्रिपुरदहन सांगत्य'नामक वाला मनुष्य या तिर्यच नहीं होता। भी है। कवि के पिता का नाम 'बोम्म . १५. इस नरक में नियम से कोई कर्मः | शेठि' था जो कावेरीनदी की नहर के भूमिज़ संशी पंचेन्द्रिय तिर्यंच या मनुष्य पास 'नयनापुर' नामक ग्राम निवासी ही आकर जन्म लेते हैं। संशी जीवों में भी मायणशेठि' नामक एक प्रसिद्ध धनिक छिपकली गिरगट आदि सरीसर्प और भेरुंड व्यापारी की 'तामरसि' नामक स्त्री के पक्षी आदि विहंगम पंचेन्द्रिय यहां जन्म नहीं गर्भ से उत्पन्न हुआ। कवि की माता लेते । यह तृतीय नरक तक ही जन्म ले 'नेमांबिक्षा' और गुरु श्री भानुमुनि' थे।। सकते हैं । इस नरक में आकर जन्म लेने (देखी प्र० 'वृ० वि० च' ) ॥ वाला कोई जीप ५ बार से अधिक निरंतर (क०४६) यहां जन्म नहीं लेता। . अंजनात्मा-पूर्व विदेहक्षेत्र में 'सीता' १६. इस नरक में जन्म और मरण में प्रत्येक का उत्कृष्ट अन्तर एक मास का है, नामक महानदी की दक्षिण दिशा के चार अर्थात् कुछ समय तक यहां कोई भी 'वक्षार' पर्वतों में से एक का नाम ॥ प्राणी आकर जन्म न ले या कुछ समय तक | पूर्व विदेहक्षेत्र में सीतानदी की दक्षिण | यहां कोई भी प्राणी न मरे तो अधिक से | दिशा में जो विदेहक्षेत्र का चौथाई भाग अधिक एक मास पर्वत यह नरक जन्म यो है वह त्रिकूट, वैश्रवण, अञ्जनात्मा और | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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