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अट्ठाईस-प्ररूपणा
वृहत् जैन शब्दार्णव . अट्ठाईस-भाव निम्न प्रकार इस में अनेक विकल्प हो सकते ८, यह ३६ भेद ॥
| १५. उपयुक्त ३६ भेदों में जीवसमालादि ५ १. गुणस्थान, मार्गणा, अन्तरमार्गणा, यह मिलाने से ४१ भेद ॥ . तीन भेद ॥
इत्यादि............... २. गुणस्थान, मार्गणा, जीवसमास, पर्याप्ति, नोट ६.-उपयुक्त १४मार्गणाओं में से .. प्राण, संज्ञा, उपयोग, यह ७ भेद ।। गति ४, इन्द्रिय २ या ५ यो ६, काय २ या
३. उपयुक्त ७ भेदों में अन्तरमार्गणा मिलाने | ६, योग ३ या १५,वेद २.या ३, कषाय २ या . से ८ भेद ॥
४ या २५, शान २ या ५ या ८, संयम २ या | ४: दो मूल भेदों में ८ अन्तरमार्गणा मिलाने ५ या ७ या १२ या २२, दर्शन ४, लेश्या ६, से १० भेद ।।
| भव्य २, सम्यक्त्व ३ या ६, संज्ञी २, आहार ५. उपर्युक्त १० भेदों में जीव-समास आदि | २ या ३ या ५, और इन में से प्रत्येक के __ ५ को मिलाते से १५ भेद । या गुणस्थान | अनेक अवान्तर भेद हैं । इसी प्रकार गुणस्थान
और १४ मार्गणा यह १५ भेद ॥ आदि में अनेकानेक विकल्प हैं जिनका विव६. उपयुक्त १५ भेदों में अन्तरमार्गणा मि- रण और स्वरूपादि यथास्थान देखें । ( देखो
लाने से १६ भेद । या गुणस्थान, १४ प्रन्थ 'स्थानांगार्णव')॥ ... मार्गणा और अन्तरमार्गणा, यह १६ भेद ।।
भट्राईस भाव (अष्टम च नवम गुणस्था७. गुणस्थान, १४ मार्गणा और जीवसमास
नी जीव के )-५३ भावों में से उपशमआदि ५, यह ३० भेद ॥
श्रेणी या क्षायिकरणी चढ़ने वाले जीव . (भेद विवक्षा से मुख्यतः यही २० भेद
के आठवें और न गुणस्थानों में निम्न प्ररूपणाओं के गिनाये जाते हैं)॥
लिखित २८ भाव होते हैं:८. उपयुक्त २० भेदों में अन्तरमार्गणा मिलाने
१. औपशमिकभाव २, या क्षायिक__से ३१ भेद ॥
भाव २ ( उपशमश्रणी घाले के )-उप| ९. गुणस्थान, १४ मार्गणा, और ८ अन्तरमा.
शमसम्यक्त्व, उपशमचारेत्रया क्षायिक, गणा. यह २३ भेद ॥
सम्यक्त्व, क्षायिकचारित्र॥ १०. उपयुक्त २० भेदों में ८ अन्तरमार्गणा
___ या क्षायिकभाव २ (क्षायिक श्रेणी मिलाने से २८ भेद । या १४ गुणस्थान
वाले के )-क्षायिक-सम्यवत्व, क्षायिकऔर १४ मार्गणा, यह २८ भेद ॥
चारिन । १५. गुणस्थान १४, मार्गणा १४, और अन्तर
२. क्षायोपशमिकभाव १३--शान ४ . मार्गणा, यह २६ भेद ।
(मतिक्षान, श्रु तज्ञान, अवधिज्ञान, मनः | १२. गुणस्थान १४, मार्गणा १४, और जीव |
पर्ययज्ञान ), दर्शन ३ (चक्षुदर्शन, अचसमासादि ५, यह ३३ भेद ॥
क्षदर्शन, अवधिदर्शन ), लब्धि ५ ( दान, | १३. उपर्युक्त २९ भेद्रों में जीवसमासादि ५
लाभ, भोग, उपभोग, वार्य ), और स___ जोड़ने से ३४ भेद ॥
रागचारित्र१॥ १४. गुणस्थान १७, मार्गणा १४, अंतरमार्गणा ३. औदयिकभाव ११-मनुष्यगति १, ।
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