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( २४४ ) अठारह सहस्र मैथुनकर्म वृहत् जैन शब्दार्णव अठारह सहस्र शी ।
नोट ४-अन्यान्य कई प्रन्थकारों ने जाती हैं, किन्तु गम्भीरता से विचार करने | निम्त्रोक्त अन्यान्य रीतियों से भी मैथुन के | पर घे अधिकांश में निमूल ही सिद्ध होती १८००० भेद गिनाये हैं:
हैं और प्रस्तार में दिये हुये भेदों पर तो किसी (१) जागृतावस्था और स्वप्नावस्था प्रकार की शंका होती ही नहीं । यदि होगी, के स्थान में दिवा-मैथुन और रात्रिमैथुन तो वह थोड़े ही से गम्भीर विचार से सशश रख कर।
निमल सिद्ध हो जायगी (२) स्त्री के दो भेद करने के स्थान में
अठारहसहस्त्र शील-शील शब्द का १४ भेद अर्थात् देवी, मनुप्यनी, तिर्यञ्चनी
अर्थ है स्वभाव, शुद्धविचार, अभ्यास, और अचेतन स्त्रो, करके और जागृत व स्वप्न
आत्म मनन, आत्मसमाधि, आत्मरमण, इन दो अवस्थाओं को न लेकर।
आत्म रक्षा, आत्म सत्कार, इत्यादि । अतः (३) स्त्री का सामान्य भेद एक ही
जिस अभ्यास से या जिस प्रकार के वि। रख कर ओर दो प्रकार की स्त्री और दो अव
चार रखने से सर्व विकार दूर हो कर स्थाओं के स्थान में क्रोधादि चार कषायें
आत्मा में निर्मलता आती और मुनिधर्म लेकर।
सम्बन्धी व्रतो या मूल गुणों की रक्षा (४) चेतन श्री ३, कृत आदि ३,
होती है तथा जिन की सहायता से संयम मनोयोगादि ३, स्पर्शनादि इन्द्रिय ५, आहार,
के भेद रूप मुनिधर्म के ८४ लाख उत्तर गुणों भय, मैथुन, परिग्रह , यह संज्ञा ४, द्रव्यत्व,
की पूर्णता होती है वे १८ हजार प्रकार के भावत्व, यह २, अनन्तानुवन्धी-क्रोधादि १६,
निम्न लिखित हैं:यह गिना कर ३४ ३४३४५४४४२४ १६
१.आत्मधर्म के लक्षण १०-(१) = १७२८० प्रकार का मैथुन तो चेतन स्त्री स.
उत्तम क्षमा (२) उत्तम मार्दव (३)। म्बन्धी । और अचेतन स्त्री ३ (१. मट्टी, काष्ठ,
उत्तम आर्यव (४) उत्तम शौच (५) पाषाण आदि की कठोर स्पर्ध्य, २.रुई आदि
उस्तम सत्य (६) उत्तम संयम (७)उत्तम! के पत्र की या रबर आदि की कोमल स्पर्ध्य,
तप (2) उत्तम त्याग (९) उसमे आ३. चित्रपट), कृत आदि. ३, मन बचन २,
किञ्चन्य (१०) उत्तम ब्रह्मचर्य। इन्द्रिय ५, संज्ञा ४, द्रव्यत्व भावत्ध २, इस
___ यह दश लक्षण ही शील के १० मूल प्रकार ३४३४२४५४४४२ = ७२०, अथवा
भेद हैं। अबेतन स्त्री ३, कृत आदि ३, मनो योग १,
२. प्राणिसंघम १०-(१1 पृथ्वी । इन्द्रिय ५, कपाय १६, इस प्रकार ३४३४१
कायिक प्राणिसंयम (२) जल कायिक ४५४ १६= ७२० प्रकार का मैथुन अचेतन
प्राणिसंयम (३) अग्निकायिक प्राणिसंयम स्त्री सम्बन्धी । चेतनस्त्री सम्बन्धी १७२८०
(४) वायुकायिक प्राणिसंयम (५) और अवेतनस्त्री सम्बन्धी ७२० भेद जोड़ने
प्रत्येकबनस्पतिकायिक प्राणिसंयम (६)। से १८००० भेद ॥ इत्यादि................
साधारणबनस्पतिकायिक प्राणिसंयम नोट ५-मैथनकर्म के उपरोक्त |
(७) द्वीन्द्रिय प्राणिसंयम (८) श्रीन्द्रिय | १८००० भेदों पर कई प्रकार की शंकाएँ उठाई | प्राणिसंयम (8) चतुरिन्द्रिय प्राणिसंयम
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