Book Title: Hindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Author(s): B L Jain
Publisher: B L Jain

View full book text
Previous | Next

Page 319
________________ ( २५५ ) अढ़ाईद्वीप वृहत् जैन शब्दार्णव अढाईद्वीप का नाम "शतार" है। इस इन्द्रक विमान | जन चौड़ा कालोदकसमुद्र बलयाकार है। की पूर्व आदि प्रत्येक दिशा में १७ और इस समुद्र को बेढे १६ लक्ष योजन चौड़ा चारों दिशाओं में ६८ श्रेणीबद्धविमान हैं। | पुष्करवर द्वीप बलयाकार है जिस के बीचों। (त्रि. गा. ४६७, ४७३ ) | बीच में बलयाकार "मानुषोत्तर" पर्वत पड़ा पाहाटी (मादय दीपहादी-- | है जिस से इस द्वीप के दो समान भाग हो जम्बुद्वीप,धातकीखंडद्वीप और पुष्करार्द्ध | जाते हैं। (त्रि० ३००) द्वीप अर्थात् अर्द्ध पुष्करद्वीप । नोट २-अढ़ाईद्वीप की रचना का ____ अढ़ाई-द्वीप का सर्व क्षेत्र सामान्यविवरण निम्न प्रकार है:-- १. मेरु ५"मनुष्य क्षेत्र", "मनुष्य लोक" या "नरलोक" भी कहलाता है,क्योंकि सर्व प्रकार ___ जम्बूद्वीप के बीचों बीच में सुदके मनुष्य इस अढ़ाईद्वीप ही में बसते हैं । र्शनमेरु, धातकीखंडद्वीप की पूर्वदिशा में विजया मेरु और पश्चिमदिशा में 'अचल इस से बाहर मनुष्य की गम्य विमान आदि की सहायता से भी नहीं है । इसी मेरु', पुष्कराद्ध की पूर्वदिशा में मन्दरकारण तीसरे "पुष्कर-द्वीप" के मध्य में मेरु' और पश्चिम दिशा में विद्य न्माली। मेरु॥ उसे दो अद्ध भागों में विभाजित करने घाला जो एक पर्वत है उसका नाम 'मानु (त्रि. गा.५६३) षोत्तर' है, अर्थात् यही पर्वत् मनुष्य क्षेत्र २. महाक्षत्र३५-- . की अन्तिम सीमा है । इस मनुप्यक्षेत्र में (१) प्रत्येक मेरु की पूर्व और पश्चिम दि. जम्वद्वीप और उसकी चारों दिशाओं का शाओं में एक एक विदेह क्षेत्र है जो हरेक (गिर्दागिई का ) "लवणसमुद्र", धात १६ पूर्वविदेहदेशों और १६ पश्चिमविदेहकीखंडद्वीप और उसकी चारों दिशाओं देशों, एवम् ३२, ३२, विदेहदेशों में विभा. का (गिगिर्द का ) “कालोदक समुद्र", | जित है और हरएक विदेहदेश में एक एक तथा मानुषोत्तर पर्वत तक का आधा | आर्यखण्ड और पांच पांच म्लेच्छखण्ड पुष्कर द्वीप, इस प्रकार ये ढ़ाई द्वीप और | हैं । अतःपांचों मेरु सम्बन्धी ५ विदेहक्षेत्र उनके मध्य के दो महासमुद्र सम्मिलित हैं जो १६०विदेहदेशों तथा१६०आर्यखण्डों हैं । इस क्षेत्र का व्यास ४५ लक्ष महा व ८०० म्लेच्छखण्डों में विभाजित हैं।। योजन है। (त्रि. गा. ६६५,६६१) (त्रि. ३०४, ३०७,३३२,३२३) (२) प्रत्येक मेरु की दक्षिण दिशा में नोट १--इस नरलोक में जम्बद्वीप | दक्षिण से उत्तर को क्रम से भरत, हैमवत, बीचों बीचमें एक लक्ष योजन चौड़ा वतुला और हरि, इस नाम के तीन तीन क्षेत्र हैं कार है। इसे बेढ़े हुए दो लक्ष योजन चौड़ा और उत्तर दिशा में दक्षिण से उत्तर को लवणसमुद्र बलयाकार है । इस समुद्र को | क्रम से रम्यक, हैरण्यवत और ऐरावत बेढे ४ लक्ष योजन चौड़ा धातकीखंडद्वीप नाम के तीन तीन क्षेत्र हैं । अतः पांचों बलयाकार है। इस द्वीप को बेड़े लक्ष यो- मेरु सम्बन्धी यह ३० ६ः है। इन में है Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352