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अणिमा ऋद्धि
वृहत् जैन शब्दार्णव दोनों प्रकार की होता है । शेष जीवों की ऐसी | __दारुणी ( ३६ ) वारिणी (३७) मदनाशनी जन्मसिद्ध शक्ति को वैक्रियिकशक्ति कहते | (३८) वश कारिणी (३६) जगत कम्पाहैं। वैक्रियिकऋद्धि नहीं॥
यिनी (४०) प्रघर्षिी (४१) भानु मा. नोट ६--भोगभूमिज प्राणियों में | लिनी (४२) चित्तोद्भवकरी(४३) महा कष्ट | विकलत्रय ( अर्थात् द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और निवारिणी (४४) इच्छा पूर्णी (४५)। चतुरेन्द्रिय जीव ), असंशो और सम्मूछन । सुख सम्पत्ति दायिनी (४६) घोरा (५७) पञ्चेन्द्रिय जीव, और जलचर प्राणी नहीं धीरा ( ४८ ) वीरा (४९.) भवना (५०)। होते।
अवध्या (५१) वन्धमाचनी (५२) भा(गो० जी० ७६, ८०, ६१, ४२) स्करी (५३) उद्योतनो ( ५४ ) वजा अणिमाद्धि --पीछेदेखोशब्द “अणिमा"
(५५)रूप सम्पन्ना (५६) रूपपरिवर्तनी
(५७) रोशानी (५८) विजया (५९) अणिमाविद्या-रोहिणी, प्रज्ञप्ति आदि जया (६०) बहुवर्द्धनी (६१) संकट ५०० महाविद्याओं में से एक विद्या का मोचनी (६३) वाराही (६३) कुटिलाकृति नाम जो मन्त्रादि द्वारा सिद्ध की जातीहैं। (६४) शान्ति (६५) कौवेरी (६६) इस विद्या के सिद्ध हो जाने पर अणिमा योगेश्वरी (६७) पलोत्साही ( ६८ ) चंडी। ऋद्धि के समान शक्ति इस के साधक को (६६) भीति (७०) दुर्नियारा (७१) प्राप्त हो जाती है । इन ५०० विधाओं सवृद्धि (७२) जूभणी (७३) सर्व हारिणी में से कुछ के नाम निम्न लिखित है :- (७४ ) व्योम भामिनी (७५) इन्द्राणी (१) रोहिणी (२) प्रशप्ति (३)
(७६ ) सिद्धार्था (७७ ) शत्र दमनी (७८) गौरी (४)गान्धारी ( ५ ) नभ सम्चारिणी
निर्व्याधाता (७६) आघातिनी (८०) (६) कान दायिनी (७) कान गामिनी
धज भेदनी । इत्यादि ॥ · । (८) आणला (९) लघिमा (१० ) अ- मणीयस-भहिलपुर निवासी "नाग'' नाक्षोभ्या (११) मनः स्तमान कारिणः
मक अधिकारी की स्त्री सुलसा के गर्भ से (१२) सुधियाना (१३) सपोरूपा (१४ )
उत्पन्न पुत्र, जिसने श्री नेमिनाथ से दीक्षा दहनी ( १५ ) विश्लोदरी ( १६) शभप्रदा
लेकर, १४ पूर्व पाटी हो २० वर्ष तक प्रव ( १७ ) रजोरूपा ( १८) दिवारात्रि विधा
ज्या ( संन्यास विशेष, मुनि धर्म ) पालन यिनी ( १९.) वजोदरी (२०) समाकृष्टि
करने के पश्चात् शत्रुजय पर्वत से मुक्तिपद (२१) अदर्शनी (२२) अजरा ( २३ )
पाया; षटभ्राताओं के नाम से प्रसिद्ध अमरा (२४) अगलस्तम्भनी (२५) जलस्त.
मुनियों में से एक मुनि। (अ० मा०) म्भनी (२६) वायुस्तम्भनी (२७) पवन सं. चारिणी ( २८) गिरिदामणी ( २९ ) अप- भण-भाग, अंश, कणं; लेश, सूक्ष्म, क्षद, संचारिणी ( ३०) अवलोकिनी (३१) लघु, अदृश्य, धान्य, संगीतशात्र की मात्रा बन्हिप्रजालिनी ( ३२) दुःख मोचनी (३३)| विशेष, पुद्गलकण, पुद्गलपरमाणु, अनु भुजङ्गिनी ( ३४ ) सर्व विष मोचनी ( ३५)। (उपसर्ग विशेष,) पीछे, सादृश्य, समीप,
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