Book Title: Hindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Author(s): B L Jain
Publisher: B L Jain

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Page 344
________________ अण्ण अण्ण ( २८० ) वृहत्जैनशब्दार्णव आदि अनेक उपनाम प्राप्त थे। यह जैन- ____ एलाचार्य, वीरसेन, जिनसेनादि का धर्म के अन्यतम श्रद्धालु थे। इसी लिये उल्लेख किया है और फिर अपने गुरु की! जैन विद्वानों ने इन्हें “सम्यक्त्वरत्नाकर” | स्तुति की है। यह पुराण प्रायः गद्यमय | शौचाभरण, सत्य युधिष्ठिर आदि अनेक है। पद्य बहुत ही कम है। कमड़ी के उपप्रशंसा वाखक पद दिये थे । महाराजा लब्ध गद्यग्रन्थों में चामुंडराय पुराण हो। रावमल्ल और यह, दोनों ही श्री अजित- सर्व से पुराना गिना जाता है । गोम्मटअनाचार के लिए को। आचार्य नेमिचन्द्र | सार की प्रसिद्ध कनड़ी टीका ( कर्नाटक लचकनी ने सुप्रसिद्ध गोम्मट- 'वृत्ति ).भी चामुंडराय ही की बनाई हुई। सार प्रन्थ की रचना ही की प्रेरणा है, जिस परसे केशवयर्णि ने संस्कृत टोका | से की थी। इन का बना हुआ. प्रसिद्ध | बनाई है। इस से मालूम होता है कि ! प्रन्थ त्रिषष्ठिलक्षण महापुराण या चामुं| चामुंडराय केवल शरवीर राजनीलिश और डराय पुराण है ।समें चौसों तीर्थः | कवि ही नहीं थे, किन्तु जैनसिद्धान्त के करों का पात्र है। इस के प्रारम्भ में भी बड़े भारी पंडित थे । ( पीछे देखो लिखा है कि इस चरित्र को पहिले | शब्द “अजितसेन आचार्य' ५० १८८ ) | "कूचिमन्दि मुनीश्वर, ( क. १७) तत्पश्चात् कवि परमेश्वर और तत्पश्चात् जिनसेन व गुणभद्र स्वामी, इस प्रकार पर- नोट-चाउराय का विशेष चरित्र म्परा से कहते आये हैं, और उन्हीं के आदि जानने के लिये शेषो संस्कृत छन्दोवद्ध अनुसार मैं भी कहता हूं। मंगलाचरण में | 'भुजबल चरित्र' ( बाहुवलिचरित्र ) छन्द ६, गृद्ध पिच्छाचार्य से लेकर अजितसेन ११, २८, ४३, ५५, ६१, ६२, ६३, आदि पर्यन्त आचार्यों की स्तुति की है और और गोम्मटसार कर्मकांड की अन्तिम ७ अन्त में श्रु तवली, दशपूर्वधर, एका- गाथा ९६६ से ९७२ तक, जिन का सारांश व दशांगधर, आचारांगधर, पूर्वांगदेशधर के भावार्थ अन्य कई आवश्यकीय सूचनाओं ENNह कर अहधलि, माघनन्दि, भूत- सहित श्री वृ० द्रव्य संग्रह की विद्वद्वर पं० प्रवी-2 . अप्पदंत, श्यामकुंडाचार्य, तुम्बुलरा- जवाहर लाल जी अत टीका की प्रस्तावना चार्य, समन्तभद्र, शुभनन्दि, रविनन्दि, | में भी पृ० १ से ७ तक दिया है। इति बुलन्दशहर नगर निवासि श्रीयुत लाला देवीदासात्मज मास्टर बिहारीलाल चैतन्य विरचित हिन्दी साहित्याभिधानान्तर्गत प्रथमावयवे श्री बृहत् जैनशब्दार्णवे प्रथमो खण्डः .. ॥ इतिशुभम् ॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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