Book Title: Hindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Author(s): B L Jain
Publisher: B L Jain

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Page 343
________________ ( २७२ ) . s अण्डर वृहत् जैन शब्दार्णव अण्ण जण, यह तीन पुत्र थे । इन में से बड़े पुत्र है जिनकी असंख्यात लोक प्रमाण संख्या शान्त की धर्म पत्नी “बल्लब्बे" के गर्भ से एक एक स्कन्ध में है। इस कविका जन्म हुआ। इसने 'कम्बिगर'। नोट १-लोकाकाश के प्रदेश असं. नाम का एक ग्रन्थ शुद्ध कनकी भाषा में ख्यात हैं । इस प्रदेश संख्या की असंख्यात लिखा है जिस में संस्कृत शब्दों का मिश्रण | गुणित संख्याविशेष का नाम “असंख्यात नहीं है। इस का समय लगभग सन् | लोक प्रमाण" है। असंख्यात की गणना के १२३५ ई... अनुमान किया जाता है। असंख्यात भेद हैं । यहां असंख्यात के जिस (क० ५२) भेद का प्रहण किया गया है वह कैवल्यज्ञान ... गम्य है। अण्डर-- स्थूल निगोदिया जीवों का नोट २-असंख्यात लोक प्रमाण संख्या शरीर विशेष । निगोदिया जीवों के ५ को ५ बार परस्पर गुणन करने से जो असंप्रकार के पिंडों या गोलकों में से एक प्र ख्यात की एक बड़ी संख्या प्राप्त होगी उस की कार का गोलक । सप्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर बराबर सर्व स्थूल निगोद शरीरों की संख्या का एक अवयव । । सर्वलोकाकाशमें है । लोकाकाश में असंख्यात स्कन्ध, अण्डर, आवास, पुलवि, और लोक प्रमाण स्कन्ध तथा एक एक स्कन्ध में शरीर, यह ५ प्रकार के गोलक, कोष्ठ या असंख्यात लोक प्रमाण अण्डर, इत्यादि के पिंड हैं। यहां सप्रतिष्ठित प्रत्येक जीवों के विद्यमान होने की सम्भाधना आकाश और शरीर का नाम स्कन्ध है । यह स्कन्ध सर्व पदगल द्रव्य की अवगाहना शक्ति के निमित्त लोकाकाश में असंख्यात लोक प्रमाण विद्यमान हैं। एक एक स्कन्ध में असंख्यात (गो० जी० १९३, १९४, १९५) लोक प्रमाण "अण्डर" हैं । एक एक अण्डर में असंख्यात लोक प्रमाण आवास अण्ण-चामुंडराय का अपर नाम । हैं । एक एक आवास में असंख्यात लोक यह द्राविड़ देशस्थ दक्षिण मथुरा या प्रमाण पुलवि हैं । एक एक पुलवि में अ. मदुरा नरेश, गंगकुल चूड़ामणि महाराज संख्यात लोक प्रमाण स्थूल निगोद शरीर राचमल्लके मन्त्री और सेनापति थे। इनका हैं । और एक एक निगोद शरीर में अन- जन्म ब्रह्मक्षत्रिय कुल में वीर नि० सं० तानन्त साधारण निगोदिया जीव हैं। १५२३ (वि० सं० १०३५) में हुआ था। अर्थात् अनन्तानन्तसाधारणनिगोदकायिक | इन की उदारता से प्रसन्न होकर राचमल्ल जीवों को निवास स्थान एक एक निगोद ने इन्हें "राय' की पदवी प्रदान की। यह शरीर है । ऐसे असंख्यात लोक प्रमाण बड़े शूर और पराक्रमी थे । गोबिन्दराज, निगोद शरीरों के समूह का नाम पुलवि, घेकोडुराज आदि अनेक राजाओंको इन्होंने असंख्यात लोक प्रमाण पुलवियों के समूह | पराजित किया था। इसी लिये इन्हें समरका नाम आवास, और असंख्यात ठोक | धुरन्धर, वीरमार्तड, रणशसिंह, धैरिकुल. प्रमाण आवासों के समहका नाम 'अण्डर'. कालदण्ड, सगर,परशुराम, प्रतिपक्षराक्षल Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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