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स्वल्पार्घ ज्ञानरत्नमाला
नियम (१) इस माला के प्रत्येक रत्न का स्वल्प मूल्य रखना इसका मुख्य उद्देश्य है। (२) जो महानुभाव ॥-) प्रवेश शुल्क जमा कराकर माला से प्रकाशित होने वाले सर्व ग्रन्थ
रलों के अथवा १) जमा कराकर मन चाहे ग्रन्थ रत्नों के स्थायी प्राहक बन जाते हैं उन्हें
माला का प्रत्येक रत्न पौने मूल्य में ही दे दिया जाता है। (३) शानदानोत्साही महानुभावों को पब्लिक पुस्तकालयों या पाठशालाओं या विद्याप्रेमियों
आदि में धर्मार्थ बांटने के लिये किसी रत्नकी कम से कम १० प्रति लेने पर ), २५ प्रति पर ।), १०० प्रति पर =) और २५० प्रति पर ॥) प्रति पया कमीशन भी काट दिया जाता है।
माला में भाज तक प्रकाशित हुए ग्रन्थ रत्न १. प्रथमरत्न--"श्री वर्तमान चतुर्विशति जिन पंचकल्याणक पाठ" ( हिन्दी भाषा ) | यह पाठ काशी निवासी प्रसिद्ध कविवर घृन्दावन जी कृत उनके जीवनचरित, जन्मकुण्डली और वंशवृक्ष तथा उनके रचे अन्य सर्व प्रन्थों की सूची, प्रत्येक ग्रन्थ का विषय व रचना काल आदि सहित नवीन प्रकाशित हुआ है अर्थात् कविवर कृत "श्री चतुर्विंशति जिन पूजा" तो कई स्थानों से कई बार प्रकाशित हो चुकी है, किन्तु उनका "पंचकल्याणक पाठ" कल्याणक कम से आज तक अन्य किसी स्थान से भी प्रकाशित नहीं हुआ। इसमें न केवल २५ पूजाओं (समुच्चय चौबीसी पूजा सहित ) का संग्रह है परन् गर्भ आदि पांचों कल्याणको में से प्रत्येक कल्याणक सम्बन्धी चौबीसों तीर्थंकरों की चौबीस चौबीस पूजाओं और एक लमु. चय पूजा, एवं सर्व १२१ पूजाओं का संग्रह है। जिसमें सर्व १२१अष्टक,२४१ अर्घ और जयमालार्ध हैं। व उपयुक्त विशेषताओं के अतिरिक्त इस पाठ में यह भी एक मुख्य विशेषता है कि पंच कल्याणकों की कोई तिथि अन्य हिंदी भाषा चौबीसी पाठों को समान अशुद्ध नहीं है। सत्र तिथियों का मिलान संस्कृत चौबीसी पाठों तथा श्री आदिपुराण, उत्तरपुराण और हरिवंशपुराण से और ज्योतिषशास्त्र के नियमानुकूल गर्भादि के नक्षत्रों से भी भले प्रकार कर लिया गया है। और साथ ही में तीर्थंकर कम से तथा तिथि कम से दो प्रकार के शुद्ध पंचकल्याणक तिथि कोष्ठ भी नक्षत्रों सहित इस ग्रन्थरत्न में लगा दिये गये हैं। इन सर्व विशेष. ताओं पर भी नुछावर केवल |-)| सजिल्द की है। वी. पी. मँगाने से डाक व्यय एक प्रति पर I) और इससे अधिक हर एक प्रतिपर =) लगेगा । मालाके ११) शुल्क देने वाले स्थायी ग्राहकों को श्री मन्दिर जी के लिये १ प्रति बिना भूल्य ही केवल डाक व्यय लेकर ही दी जा सकती है। किसी अन्य ग्रन्थ के साथ मँगाने से उसका डाक व्यय केवल ॥ ही लगेगा।
२.द्वितीय रत्न-"श्री वृहत् जैन शब्दार्णव"--यही प्रन्थ है जो इस समय पाठकों के हस्तगत है।
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