Book Title: Hindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Author(s): B L Jain
Publisher: B L Jain

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Page 340
________________ - - - अण्डज .. ( २७६ ) अणुव्रती वृहत् जैनशब्दार्णव ३. कनकरूप्यातिक्रम त्रैलोक्य भर के प्राणीमात्र के जन्म ४. कुन्य भांडाति क्रम सामान्यतः निम्न लिखित तीन प्रकार के (या वस्त्रकुप्याति क्रम) ५. दासी दासात्तिक्रम १. उप्पादज-उप्पादशय्या से पूर्ण (या द्विपदचतुष्पदाति क्रम )॥ युवावस्था युक्त उत्पन्न होने वाले प्राणी । इत०सू०अ०७ सू० १-८, २४-२४ । इस प्रकार का जन्म केवल देवगति और सा०अ० ४। १५,१८,४५,५०,५८,६४ । नरकगति के प्राणियों का ही होता है। नोट २-उपरोक्त पंचाणवतो, सप्त (देखो शब्द 'उप्पादज')॥ शीलों, सर्व भावनाओं व सर्व अतिचारों का २. गर्भज--गर्भ से उत्पन्न होने वाले लक्षण व स्वरूप आदि प्रत्येक शब्द के साथ प्राणी अर्थात् वे प्राणी जो पिता के शुक्र यथास्थान देखें ॥ (वीर्य) और माता के शोणित ( रज ) के नोट ३-भावना शब्दका अर्थ "बारंबार संयोगसे माताके गर्भाशयमें उत्पन्न हो कर चिन्तवन करना, बिचारना या ध्यान रखना" और कुछ दिनों तक बहीं बढ़कर माता की है । अतिचार शब्द का अर्थ जानने के लिये योनिद्वार से बाहर आते हैं.॥ पीछे देखो शब्द "अचौर्य-अणुव्रत'का नोट १॥ ___ यह सामान्यतः ३ प्रकार के होते हैं-- . नोट ४--संसार में जितने भी पाप या (१) जरायुज; जो गर्भ से जरायु अर्थात् दुराचार हैं वे सर्प उपरोक्त ५ पापों ही के अ- | जेर या पतली झिल्ली युक्त उत्पन्न हो, जैसे म्तर्गत हैं। इतना ही नहीं किन्तु सूक्ष्म विचार मनुष्य, गाय, भैंस, घोड़ा, बकरी, हरिण दृष्टि से देखा जाय तो एक 'हिंसा' नामक आदि । (२) पोतज; जो गर्भ से बिना ज. पाप में ही पापों के शेष चारों भेदों का समा- गयु ( जेर या झिल्लो ) के उत्पन्न हों, पेश है । अर्थात् वास्तव में केवल 'हिंसा' ही | जैसे सिंह, स्यार, भेडिया, कुत्ता आदि । का नाम “पाप" है। अन्य सर्व ही प्रकार के ( ३) अण्डस; जो गर्भ से अण्डे द्वारा अपराध जिन्हें 'पाप' या दुराचारादि' नामोसे उत्पन्न हों, जैसे कच्छव मत्स्य आदि पुकारा जाता है वे किसी न किसी रूपमें एक बहुत से जलचर जीव, सर्प, छपकली, 'हिंसा' पाप के ही रूपान्तर हैं । ( पोछे देखो मेढ़क आदि कई प्रकार के थलचर जीव शब्द 'अजीवगतहिंसा' और एस के नोट १ और प्रायः सर्व पक्षी या नभचर जीव । २, ३, पृष्ठ १६२ )॥ (देखो शब्द 'गर्भज' ) ॥ नोट ५--पीछे देखो शब्द 'अगारी' ३. संमूर्छन (सम्मूच्र्छन)-प्राणी नोटों सहित पृष्ठ ५१॥ जो बिना उप्पाद शय्या और बिना गर्भ के भणु व्रती-पंचाणुव्रतों को पालन करने अन्य किसी न किसीरीति से उत्पन्न हों। पाला । (पीछे देखो शब्द 'अवत' नोटों इनके उद्भिज ( उद्भिद ) स्वेदज, टीवनज, सहित, पृ०२७३)॥ .. आदि अनेक भेद हैं । ( देखो शब्द "सम्मू छन")। भिण्डज-अपडे से जन्म लेने वाले प्राणी ॥ नोट १-एकेन्द्रिय से चौइन्द्रिय तक काकाका A - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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