Book Title: Hindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Author(s): B L Jain
Publisher: B L Jain

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Page 325
________________ । ( २६१ ) अढ़ाईद्वीप पाठ वृहत् जैन शब्दाणव __ अढ़ाईद्वीप पाठ नोट ४-१६० विदेह देशों और उनमें नित्य विद्यमान ३० तीर्थंकरों और भरत, ऐरावत क्षेत्रों की ३० चौबीलो आदिका विवरण जानने के लिए नीचे कोष्ठ १, २, ३ नोटों सहित देखें: कोष्ठ १ । जम्बूद्वीप के सुदर्शनमेरु सम्बन्धी विदेह देश ३२। क्रम संख्या विदेह देश राजधानी विवरण कच्छा सुकच्छा महाकच्छा कच्छकावती आवर्सा लाङ्गलावर्त्ता (मङ्गलावती) पुष्कला पुष्कलावती क्षेमा यह ८देश सुदर्शनमेरु कीपूर्व दिशा में सीताक्षेमपुरी | नदी के उत्तर तट पर मेरु के निकट के भद्रशालवन अरिया की बेदी से लवण समुद्र के निकट के देवारण्यबन की वेदी तक क्रम से पश्चिम से पूर्व को हैं ॥ | अरिष्टपुरी इन कच्छा आदि देशोंका परस्पर विमाग करने खड्गा बाले चित्रकूट, पनकूट, नलिन, एक शैल, यह मंजूषा चार वक्षारगिरि और गांधबती, द्रहवती, पकवती, यह तीन विभंगा नदी हैं जो क्रम से एक गिरि, एक नदी, एक गिरि, एक नदी, एक गिरि, एक नदी, एक गिरि, इन देशों के बीच बीच पड़ कर इनकी पुंडरीकिणी | सीमा बनाते हैं । औषधी घत्सा सुसीमा ___ यह आठ देश सुदर्शनमेरु की पूर्व दिशा | में सीतानदी के दक्षिण तट पर लवण समुद्र सवत्सा कुण्डला के निकट के देवारण्यबन की वेदी से मेरु के महावत्सा अपराजिता निकट के भद्रशालबन की वेदी तक क्रम से । वत्सकावती अभंकरा | पूर्व से पश्चिम को हैं॥ इन वत्सा, आदि देशों के बीच बीच में .. रम्या अङ्का | त्रिकूट, चैश्रवण, अंजनात्मा, अंजन, यह चार सुरम्यका पद्मावती वक्षार पर्वत, और तप्तजळा, मत्तजला, उन्मत्त रमणीया जला, यह तीन विभंगा नदी क्रम से पर्वत, शुभा नदी, पर्वत, नदी, इत्यादि पड़ कर इन देशों १६. मङ्गलावती रत्नसंचया | की पारस्परिक सीमा बनाते हैं । यह कच्छा आदि १६ 'विदेहदेश' मेरुकी पूर्व दिशामें होनेसे 'पूर्व विदेहदेश'कहलाते हैं। - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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