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( २३६ ) अठाई रासा वृहत् जैनशब्दार्णव
अठाईव्रत धर्मनाथ पुराण, शान्तिनाथ पुराण, मल्लिनाथ| पर्याय पाई और फिर हस्तिनापुरी ही में पुराण, पार्श्वनाथ पुराण, बर्द्धमान पुराण, | जन्म लेकर और राज्यसुख भोग कर सिंसिद्धान्तमुक्तावली, कर्मविपाक, देवसेन कृत घाष्टक नामक मुनि के उपदेश से राज्य तत्वार्थसार टीका, धन्यकुमारचरित्र, जम्ब. त्याग किया और मुनिव्रत द्वारा कर्मबन्ध स्वामी चरित्र, श्रीपालचरित्र, गजसुकुमाल काट कर मुक्तिपद पाया। (पीछे देखो चरित्र, सुदर्शन चरित्र, यशोधर चरित्र, | शब्द 'अठाईपर्व' नोट सहित, पृ०२३३) । उपदेशरत्नमाला, सुकुमाल चरित्र इत्यादि ॥ अठाईव्रत-यह व्रत एक वर्ष में तीन बार अठाईरासा-इस नाम का श्री विनय- अठाईपर्व के दिनों में अर्थात् कार्सिक, कीर्ति भट्टारक रचित एक पद्यात्मक क. फाल्गुन और आषाढ़, इन तीन महीनों के थानक है जिसमें अठाईव्रत और नन्दीश्वर अन्तिम आठ आठ दिन तक किया जाता पूजा का महात्म वर्णित है । कथा का है। यह व्रत अन्य प्रतों की समान उत्सम, सारांश यह है-पोदनपुर नरेश एक मध्यम और जघन्य भेदों से तीन प्रकार विद्यापति नामक विद्याधर राजा मे एक का है जिस की विधि निम्न प्रकार है:चारण मुनि से नन्दीश्वर पूजा का महात्म १. उत्तम-सप्तमी को धारणा अर्थात् सुन कर विमान द्वारा नन्दीश्वरद्वीप की एकाशना पूर्वक किसी मुनि या जिन यात्रार्थ गाढ़ भक्तिवश गमन किया। पर- प्रतिमा के सन्मुख व्रत करने की प्रतिज्ञा स्तु मानुषोत्तर पर्वत से टकरा कर उसं. ले । अष्टमी से पूर्णिमा तक निर्जल उपवास का विमान पृथ्वी पर गिर गया । राजा ने करै । पूर्णिमा से अगले दिन पड़िया को प्राणान्त हो कर देवगति पाई और नम्दी- पारण अर्थात् एकाशना पूर्वक व्रत की श्वरद्वीप जाकर अष्टद्रव्य से विधिपूर्वक | समाप्ति करै । इस प्रकार प्रतिवर्ष तीन पूजा की । पश्चात् विद्यापति के रूप में बार व्रत करता हुआ आठ वर्ष तक करें। पोदनपुर आकर रानी सोमा से कहा कि २. मध्यम-सप्तमी को धारणा, अ. मैं नन्दीश्वरद्वीप के जिनालयों की पूजाकर एमी, दशमी, द्वादशी, चतुर्दशी और आया हूँ । रानी बारम्बार यह उत्तर देकर पूर्णिमा को निर्जल उपवास करै और नकि मानुषोत्तर को उल्लंघनकर जाना मनुष्य वमी, एकादशी, त्रयोदशी और पड़िया की शक्ति से सर्वथा बाहर है अपने सम्य- को एकाशना करै । इस प्रकार प्रतिवर्ष
श्रद्धान में दृढ़ बनी रही। तब देव ने तीन बार करता हुआ आठ वर्ष, सात वर्ष 'प्रकट होकर यथार्थ बात बताई । विद्या- | अथवा ५ वर्ष तक व्रत करै॥ पति का जीव देवायु पूर्ण कर हस्तिनापुरी __३. जघन्य-अष्टमी, चतुर्दशी और में एक राज्यघराने में आ जम्मा और कुछ पूर्णिमा को अथवा केवल अष्टमी और दिन राज्य भोग कर और फिर राज्य को पूर्णिमा को, या अष्टमी और चतुर्दशी को, | त्याग मुनिवत पालकर उसी जन्म से पा केवल अष्टमी या चतुर्दशी या पू. निर्वाणपद पाया । सोमा रानी ने भी र्णिमा को निर्जल उपवास करै और शेष अठाईव्रत के महात्म से स्रोलिङ्ग छेद देव । दिनों में एकाशन करै अथवा निर्जल उप
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