Book Title: Hindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Author(s): B L Jain
Publisher: B L Jain

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Page 305
________________ (२४१ ) अठाईव्रतोद्यापनविधि वृहत् जैन शब्दार्णव अठारह जन्ममरण (५) गणधरवलय पूजा (६) नन्दिशान्तिक | अधिक १८ बार एक श्वासोच्छ्वास में कर ३. श्री श्रु तसागर-पीछे देखो शब्द सकता है जिस का विवरण निम्न प्रकार 'अठाईव्रत कथा' का नोट २, पृ० २३६॥ ४. श्री सकलकीर्त्ति (द्वितीय)-इनके पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निरचे अन्य प्रन्थ--(१) षोड़शकारण कथा | कायिक, पवनकायिक और साधारण(२) श्रु तकथाकोश (३) कातंत्ररूपमाला बनस्पतिकायिक, यह ५ प्रकार के जीव लघुवृत्ति (४) गुलावली कथा (५) रक्षा- स्थूल और सूक्ष्म भेदों से १० प्रकार वन्धन कथा (६) त्रिवर्णाचार कथा (७) के हैं। इन में प्रत्येकवनस्पतिकायिक का जिनरात्रि कथा (८) सहस्रनाम स्तोत्र (6) एक भेद मिलाने से सर्घ ११ भेद हैं। इन लब्धिविधान ॥ ११ प्रकार के लब्ध्यपर्याप्तक शरीरों में से अठाईव्रतोद्यापनविधि- पीछे देखो हर एक प्रकार के शरीर को कोई एक शब्द 'अठाईव्रत', पृ० २३६-२३६ जीव एक अन्तमुहूर्त में अधिक से अधिक अठारह कूट भरत, और ऐरावत क्षेत्रों के | ६०१२ बार और इसलिये ग्यारहों प्रकार के शरीरों को ११ गुणित ६०१२ अर्थात् दौनों विजयाद्ध पर्वतों पर)-१. भरतक्षेत्र ६६१३२ बार, और द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, के "विजयार्द्ध" पर के कूट पूर्व दिशा की चतुरेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक ओर से क्रम से (१) सिद्धकूट (२)दक्षि शरीरों को कम से ०, ६०, ४०, २४ बार, णा भरतकूट (३) खंडप्रपात (४) पूर्ण एवम् सर्व ६६१३२+0+६०+४+ भद्र (५) विजयार्द्धकुमार (६) मणिभद्र (७) २४ =६६३३६ बार पा सकता है। तामिश्रगुह (८) उत्तर-भरत (९) वैश्रवण ॥ एक मुहूर्त में ३७७३ श्वासोच्छ्वास ___२. ऐरावत क्षेत्र के "विजयार्द्ध" पर होते हैं अतः एक अन्तमुहूर्त में अर्थात् के कूट क्रम से (१) सिद्धकूट (२) उत्तरार्द्ध एक मुहूर्त से कुछ कम काल में ३७७३ से ऐरावत कूट (३) तामिश्रगुह (४) मणिभद्र १५) विजयार्द्ध कुमार (६) पूर्गभद्र (७) खंड कुछ कम श्वासोच्छ्वास होंगे। यदि यहां प्रपात (E) दक्षिणैरावताद्ध (६) चैश्रवण ॥ जन्म मरण की गणना में ३६८५ श्वासो(त्रि०७३२--७३४) छ्वास का एक अन्तर्मुहर्त ग्रहण किया। अठारहतायोपशमिक भाव- १८ जाय अर्थात् ३६८५१ श्वासोच्छ्वास में | मिश्रभाव । ( पीछे देखो शब्द "अट्ठाईस भाव" का नोट, पृ० २२५) अधिक से अधिक जन्म मरण को उपयुक्त | __ (गो० क० ८१३,८१७) संख्या ६६३३६ हो तो ६६३३६को ३६८५३ अठारह जन्ममरण ( एक श्वासो- का भाग देने से एक श्वासोच्छ्वास में च्छ्वास के )--कोई लब्ध्यपर्याप्तक जीव जन्म मरण की उत्कृष्ट संरया पूरी १८ यदि अपनी अपर्याप्त अवस्था में अति | प्राप्त हो जाती है। शीघ्र शीघ्र जन्म मरण करे तो अधिक से ) नोट १-एक मुहूर्त दो घड़ी या ४८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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