Book Title: Hindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Author(s): B L Jain
Publisher: B L Jain

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Page 304
________________ ( २४० ) अठाईव्रत कथा वृहत् जैन शब्दार्णव अठाईव्रतोद्यापन यपुर निवासी पं० नाथलाल दोसी खंडेलवाल | (२) सुकुमालचरित, भाषा बचनिका वि० रचित (वि० सं० १९२२ में )॥ सं० १९१८ में .. इन महानुभावों के रचे अन्य प्रन्थ | (३) महीपाल चरित, भाषा बचनिका वि० निम्न लिखित हैं:-- सं० १९१९ में १. 'श्री श्रु ससागर' रचित ग्रन्थ-- , (४) दर्शनसार, भाषा छन्दवद्ध वि० सं० (१) तस्वार्थ की सुबोधिनी टीका। १९२० में (२) तर्कदीपक। (५) षोडशकारणजयमाल, भाषा छन्दवद्ध (३) षटपाइड़ की टीका। वि० सं० १९२० में (४) यशस्तिलक काव्य की टीका। (६) रत्नकरंडश्रावकाचार, भाषा छन्दबद्ध (५) विक्रम प्रबन्ध । वि० सं० १९२० में (६) क्रियापाठ स्तोत्र । (७) रत्नत्रयजयमाल, भाषा छन्दवद्ध वि (७) व्रतकथा कोश। . . सं० १९२२ में () थ तस्कन्धावतार। (८) रत्नत्रयजयमाल, भाषा बचनिका वि० (8) ज्ञानार्णव टीका सं०१६२४ में (१०) आशाधरकतपूजाप्रबन्ध की टीका। (8) सिद्धप्रिय स्तोत्र, भाषां छन्दबद्ध (११) सारस्वतयंत्र पूजा। . नोट ३--एक भाषा चौपाईबद्ध (१२) नन्दीश्वरउद्यापन। . .. 'अठाईव्रत कथा' 'श्री भूषण' भट्टारक के (१३) अष्टान्हिकोद्यापन । शिष्य 'श्री ब्रह्मशानप्लागर' रचित है और • (१४) आकाशपञ्चमी कथा। एक खगैवा जाति के श्री जगभूषण भट्टारक (१५) आदित्यचार कथा के पट्टाधीश श्री विश्वभूषण रचित अधिक (१६) भक्तिपाठ। प्रसिद्ध है जो शुभ मिति फाल्गुन शु० ११ (१७) सहस्त्रनामस्तोत्र की टीका । बुधवार को प्रमोदविष्णु नामक वि०सं० १७३८ (१८) लक्षणपंक्ति कथा। में रची गई है। (१९) जैनेन्द्रयशविधि। अठाईव्रतोद्यापन-इस नाम के निम्न (२०) एकीभाव की कथा। लिखित विद्वानों के रचै कई ग्रन्थ हैं जिनमें (२१) चन्दनषष्ठीव्रतकथा । अष्टान्हिकाव्रत के उद्यापन की विधि २. श्री हरिषेण' रचित ग्रन्थ सविस्तर वर्णित है:-- • (१) बृहत् आराधना कथा कोश १.श्री कनककीर्ति भट्टारक--इन के (२) धर्म परीक्षा (संस्कृत) रचे अन्य गन्थ--अष्टान्हिकासर्वतोभद्र ३. 'श्री विश्वभूषण' रचित जिनदत्त चरित पूजा आदि ॥ . छन्दोबद्ध, सं० १७३८ में ॥ २. श्री धर्मकीर्ति भट्टारक-इन के रचे ४. पं० नाथूलाल दोसी रचित अन्य प्रन्थ-(१) आशाधर कृत यत्याचार (१) परमात्माप्रकाश, भाषा छन्दयद्ध, की टीका (२) धनंजयकृत द्विसन्धानकाव्य - सं० १९११ में । की टीका (३) हरिबंशपुरोण (४) पद्मपुराण | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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