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( २२२ ) वृहत् जैन शब्दाव
अट्ठाईस नक्षत्राधिप
वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़, अभिजित, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपदा, उत्तराभाद्रपदा, रेवती । (देखो ग्रन्थ 'स्थानां गार्णष' ) ॥ ( त्रि. गा. ४३२, ४३३ )
अट्ठाईस नक्षत्राधिप-अश्विनी आदि
२८ नक्षत्रों के २८ अधिपति देवताओं के नाम क्रम से निम्न लिखित हैं:
१. अश्व, २. यम ३. अग्नि, ४. प्रजापति, ५. सोम, ६. रुष्ट्र, ७. अदिति, म. देवमंत्री, ६. सर्प, १०. पिता, ११. भग १२. अर्यमा, १३. दिनकरा, १४. त्वष्टा, १५. अनिल, १६. इन्द्रग्नि, १७. मित्र, १८. इन्द्र, १९. नैऋति, २०. जल, २१. विश्व, २२. ब्रह्मा, २३. विष्णु, २४. वसु, २५. वरुण, २६. अज, २७. अभिवृद्धि, २८. पूषा । (देखो प्र० 'स्थानां गार्णव' ) ॥ ( त्रि० गा० ४३४, ४३५ ) ५. कर्णेन्द्रिय विषय ७—पड़ज, नोट १ - अश्विनी आदि प्रत्येक नक्षत्र ऋषभ, गाम्धार, मध्यम, पंचम, धैवत, के तारों की अलग अलग संख्या क्रम से ५, निषाद
अट्ठाईस इन्द्रियविषय
५. बाल प्रयोगाभास २ - (१) हीन प्रयोगाभास (२) क्रम भङ्ग प्रयोगाभास ।
नोट - इन २८ प्रकार के अनुमानाभास में से प्रत्येक का लक्षण स्वरूपादि यथास्थान देखें | ( देखो ग्रन्थ 'स्थानाङ्गाofa') 11
परी० अ० ६ सूत्र ११-५० )
अट्ठाईस इन्द्रियविषय- पांचों बाह्य इन्द्रियों और मनेन्द्रिय (अभ्यन्तर इन्द्रिय) के १८ मूल विषय निम्न लिखित हैं:
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१. स्पर्शनेन्द्रिय विषय - कोमल, कठोर, लघु, गुरु, शीत, उष्ण, रूक्ष, स्निग्ध ॥
२. रसनेन्द्रिय विषय ५ - कट, मिष्ट, कषायल, आम्ल, तिरू ॥
३. घ्राणेन्द्रिय विषय २-सुगन्ध, दुगंध ॥
४. नेत्रेन्द्रिय विषय ५ - स्वेत, पीत, हरित, अरुण, कृष्ण ॥
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३, ६, ५, ३, १, ६, ३, ६, ४, २, २, ५, १, १, ४, ६, ३, ९, ४, ४, ३, ३, ५, १११, २, २, ३२ हैं ॥
६. अनिन्द्रिय ( मनेन्द्रिय) विषय १ - संकल्पविकल्प | ( देखो ग्रन्थ 'स्थागार्णव' ) ॥
( गो० जी० ४७८, मू० ४१८ )
प्रत्येक नक्षत्र के तारों की इस संख्या को ११११ में अलग अलग गुणन करने से उन
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भट्ठाईस इन्द्रियविषय निरोध - २८ नक्षत्रों के परिवार तारोंकी संस्था प्राप्त होगी।
प्रकार के इन्द्रिय विषयों से मन को रोकना । ( ऊपर देखो शब्द 'अट्ठाईस 'इन्द्रियविषय' ) ॥ अट्ठाईस नक्षत्र - अश्विनी, मरणी, कुत्तिका, रोहिणी, मृर्गाशरा, आर्द्रा, पुन,
नोट २ - प्रत्येक नक्षत्र के तारागण की स्थिति से जो आकार दृष्टिगोचर होते हैं वह क्रम से ( उपरोक्त नक्षत्रक्रम से ) निम्न लिखित हैं:- १ अश्बमस्तक, २. घुलीपाषाण, ३. बीजना, ४. गाड़ा की ऊद्धिका, ५. मृगमस्तक, ६. दीपक, ७. तोरण, ८.
छत्र,
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