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देव ॥ .
अट्ठानवे जीपसमास वृहत् जैन शब्दार्णव अट्ठावन बन्धयोग्य कर्मप्रकृतियां
४-[१] सुभोगभूमिज पर्याप्त मनुष्य [२] नोट ५-अभेद विवक्षा से या द्रव्यासुभोगभूमिज निवृत्यपर्याप्त मनुष्य [३] र्थिक नय से तो यद्यपि जीवसमास एक ही| कुभोगभूमिज पर्याप्त मनुष्य [४] कुभोग है क्योंकि 'जीव' शब्द में जीवमात्र का ग्रहण | भूमिज नित्यपर्याप्त मनुष्य ॥ | हो जाता है तथापि भेद विवक्षा से स्थाना
८. देव पर्यायी जीवों के जीवसमास घिकार द्वारा जीवसमास २,३,४,५,६,७,८, २-[१] पर्याप्त देव [२] निर्वृत्यिपर्याप्त ९,१०,११,१२,१३,१४,१५, १६,१७,१८,१६,२०,
२१, २२, २४, २६, २७, २८, ३०, ३२, ३३, ६. नारकी जीवों के जीवसमास २०३४,३६.३८,३६,४२,४५,४८, ५१, ५४, ५७, ६८ [१] पर्याप्त नारकी [२] निवृत्यपर्याप्त आदि अनेक हो सकते हैं । इसी प्रकार नारकी ॥
योनि, शरीरावगाहना और कुल, इन तीन ... नोट २-सम्मूर्छन मनुष्य नियम से अधिकारों द्वारा भी जीवसमास के अनेक लब्ध्यपर्याप्तक ही होते हैं। और सर्व गर्भज विकल्प हैं। जीव तथा उप्पादज [ देव और नारकी ] | नोट ६.-योनि अपेक्षा जीवसमास लब्ध्यपर्याप्तक नहीं होते । सम्मूर्छन मनुष्यों के उत्कृष्ट भेद ८४ लाख, कुल अपेक्षा १६७॥ की उत्पत्ति चक्री की रानी आदि को छोड़ लाख कोटि अर्थात् १९ नियल ७५ खर्व (१६कर आर्यखंड की शेष नियों की योनि, ७५०००००००००००), और शरीरावगाहना काँख (बगल ), स्तन, मल, मूत्र, दन्तमल अपेक्षा असंख हैं । ( देखो प्रन्थ 'स्थानाङ्गाआदि में होती है।
नोट ३-म्लेच्छखण्डी और भोगभूमिज मनुष्य सम्मूर्छन नहीं होते तथा देव और |
| अट्ठावन बन्धयोग्य कर्मप्रकृतियां नारकी जीव लब्ध्यपर्याप्तक नहीं होते। (अष्टम गुणस्थान में )-आठवें गुणस्थान - इस प्रकार (१) एकेन्द्रिय (२) विकल- में बन्ध योग्य ५८ कर्म प्रकृतियां निम्नप्रय (३) कर्मभूमिज-गर्भजपंचेन्द्रिय तिर्यञ्च लिखित हैं:-- (४) कर्मभूमिज सम्मूर्छन पञ्चेन्द्रिय १. ज्ञानावरणी कर्मप्रकृतियां--(१) तिर्यञ्च (५) भोगभूमिज पचेन्द्रिय तिर्यञ्च मतिज्ञानावरणी ( २ ) श्रु तज्ञानावरणी (६) कर्मभूमिज मनुष्य (७) भोगभूमिज (३) अवधिशानावरणी ( ४ ) मनःपर्ययमनुष्य (E) देव (६) नारकी, इन 8 के क्रम | ज्ञानावरणी (५) केवलज्ञानावरणी। से ४२, १, १२, १८, ४, ५, ४. २, २, २.दर्शनावरणी कर्मप्रकृतियां ६--(६) एवम् सर्व ६८ जीव समास हैं। चक्षदर्शनावरणी (७) अचक्षुदर्शनावरणी ____नोट ४.--सम्पूर्ण जीवसमासों का नि- (८) अवधिदर्शनावरणी (8) केवलरूपण [१] स्थान[२] योनि [३] शरीरावगा. दर्शनाधरणी ( १० ) निद्रादर्शनावरणी हना[४]कुलभेद, इन ४ अधिकारों द्वारा किया | (११) प्रचलादर्शनाधरणी।। जाता है। उपयुक्त ९८ जीवसमास स्थाना- | ... ३. वेदनी कर्मप्रकृति १--(१२) साता धिकार द्वारा निरूपण किये गये हैं। वेदनी ।
र्णय')"
(गो० जी० ७०-११६)
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