Book Title: Hindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Author(s): B L Jain
Publisher: B L Jain

View full book text
Previous | Next

Page 293
________________ अट्ठानवे जीवसमास वृहत् जैन शब्दार्णव अानवे जीवसमास एवम् सर्व ८४ लाख बिल हैं। [ देखो शब्द | र्यचों के जीवसमास १२-(१) गर्भज'अञ्जना (:)' पृ० २१६, और ग्रन्थ | संशी-जलचर (२) गर्भज संशी थलचर (३) स्थाना ' (त्रि. १५१, १५६-१६५) । गर्भज संशी नभचर (४) गर्भज असंशी ज लचर (५) गर्भज असंज्ञी थलचर (६) अट्रानवे जीवसमास-जिन धर्म | गर्भज असंही नभचर, यह छहों प्रकार द्वारा अनेक जीवों अथवा उनकी अनेक | के गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यंच (१) पर्याप्त प्रकार की जातियों का संग्रह किया जाय और (२) नित्यपर्याप्त, इन दो दो प्रकार उन धर्म विशेषों को 'जीव-समास' कहते के होते हैं । अतः इन छह भेदों को द्वगुणा हैं जिनकी संख्या ९८ निम्न प्रकार है: करने से इन के १२ भेद होते हैं । १. स्थावर या एकेन्द्रिय जीवों के ४. कर्मभूमिन सम्मूर्छन पंचेन्द्रिय जीवसमास ४२-(१) स्थूल पृथ्वी का तिर्यञ्चों के जीवसमास१८--सम्मूच्र्छनयिक (२) सूक्ष्म पृथ्वाकायिक (३) स्थूल संशी जलचर थलचर नभचर और सम्मूजलकायिक ४) सूक्ष्म जलकायिक (५) छैन असंज्ञी जलचर थलचर नभचर, यह स्थल अग्निकायिक (६) सूक्ष्म अग्निका. छह प्रकार के सम्मूर्छन पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च - यिक (७) स्थूल वायुकायिक (5) सूक्ष्म वायुकायिक (E) स्थूल नित्यनिगोद सा (१) पर्याप्त (२) निर्वृत्यपर्याप्त और (३) धारण बनस्पतिकायिक (१०) सूक्ष्म नित्य लब्ध्यपर्याप्त, इन तीनों प्रकार के होते हैं। निगोद साधारण बनस्पतिकायिक (११) अतः ६ भेदों को तिगुणा करने से इनके स्थूल इतरनिगोद साधारण बनस्पति १८ भेद हैं। कायिक (१२) सूक्ष्म इतर तिगोद साधा ५. भोगभूमिज पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों के रणबनस्पतिकायिक (१३) सप्रतिष्ठित जीवसमास ४-(१) पर्याप्त थलचर (२) प्रत्येकबनस्पतिकायिक (१४) अप्रतिष्ठित पर्याप्त नभचर (३) नित्यपर्याप्त थलचर प्रत्येकवनस्पतिकायिक; एकेन्द्रिय जीवों (४) निवृत्यपर्याप्त नभचर । के इन १४ भेदों में से हर एक भेद के जीव नोट १-भोगभूमिज जीव जलचर, (१) पर्याप्त (२) निवृत्यपर्याप्त और (३) सम्मूर्छन तथा भसंज्ञी नहीं होते और न लब्ध्यपर्याप्त, इन तीनों प्रकार के होते हैं। | लब्ध्यपर्याप्तक होते हैं । भोगभमिज पंचेन्द्रिय .. अतः इन १४ भेदों को तिगुना करने से तिर्यञ्चगर्भज ही होते हैं । भोगभूमि में विकएफेन्द्रिय जीवों के ४२ जीवसमास होते हैं। लत्रय जीव भी नहीं होते। ___२. विकलत्रय जीवों के जीवसमास .६. कर्मभमिज मनुष्यों के जीवसमास 8-(१) द्वीन्द्रिय (२) त्रीन्द्रिय (३) चतु ५--(१) आर्यखंडी गर्भज पर्याप्त मनुष्य रिन्द्रिय. यह तीन विकलत्रय जीव हैं। इन में से हर एक प्रकार के जीव पर्याप्त, | (२) आर्यखंडी गर्भज निवृत्यपर्याप्त मनुष्य निवृत्यपर्याप्त, और लक्ष्यपर्याप्त होते हैं।। (३) आर्यखंडी सम्भूर्छन लब्ध्यपर्याप्त अतः ३ भेदों को तिगुणा करने से विक- | मनुष्य (४) म्लेच्छखंडी पर्याप्त मनुष्य | लत्रय जीवों के 8 जीवसमास होते हैं । । (५) म्लेच्छखंडी निवृत्यपर्याप्त मनुष्य । ___३. कर्मभूमिज गर्भज पंचेन्द्रिय ति- ७. भोगमिज मनुष्यों के जीध समास Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352