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अंजन
( २१२ )
वृहत् जैन शब्दार्णव
प्रकार मेरु की उत्तर दिशा में 'गन्धमादन' और 'माल्यवान' नामक दो गजदन्त पर्वतों के मध्य ' उत्तरकुरु-भोगभूमि' है । मेरु की पूर्व और पश्चिम दिशाओं में भद्रशालबने है । देवकुरु और पश्चिम भद्रशाल में सीतोदा नदी और उत्तरकुरु व पूर्व भद्रशाल में सीतानदी बहती है । इन दोनों नदियों के प्रत्येक तट पर दोनों भोगभूमियों ओर दोनों बनों में दो दो दिग्गज पर्वत हैं । अतः मेरु की चारों दिशाओं में सर्व ८ दिग्गज हैं, जिन में से सीतोदा नदी के बाम तट पर के एक दिग्गज का नाम 'अञ्जन' है । (देखो जम्बू - विदेहक्षेत्र का चित्र ) ॥
( जि० गा० ६६१-६६४ )
(३) पूर्व विदेह में सीता नदी की दक्षिण दिशा के ४ वक्षार पर्वतों में से एक पर्वत का नाम ।
यह पर्वत सीता नदी की दक्षिण दिशा के ८ विदेह देशों में से पश्चिमी सीमा के पास मंगलावती और रमणीया नामक देशों के मध्य में है । ( आगे देखो शब्द 'अञ्जनात्मा', पृ०२१८, और विदेह क्षेत्र का चित्र ) ।।
(त्रि० गा० ६६७ )
(४) सनत्कुमार- महेन्द्र नामक युग्म अर्थात् तृतीय चतुर्थ स्वर्गी के युगल का सब से नीचे का प्रथम इन्द्रक विमान ॥ (त्रि०गा० ४६६ )
(५) खर भाग की १६ पृथ्वियों में से 'अञ्जनमूलिका' नामक १० वीं पृथ्वी का नाम 'अञ्जन' भी है (अ०मा० ) | ( आगे - देखो श• 'अञ्जन मूलिका, पृ० २१४ ) ॥ (६) आठवें स्वर्ग के एक विमान का
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नाम (अ० मा० ) ॥
अंजनगिरि
(७) रुचकवर पर्वत का ७वां कूट
( अ० मा० ) ॥
(८) इस नाम का एक बेलन्धर देव (अ० मा० ) ।।
(ह) द्वीपकुमार देवों के इन्द्र के तीसरे लोकपाल का नाम ( अ० मा० ) ॥
(१०) उदधिकुमार देवों के इन्द्र प्रभजन के चौथे लोकपाल का नाम (अ० ATO) II
(११) वायुकुमार जाति के इन्द्र का नाम (अ० मा० ) ॥
(१२) काजल; सौवीराञ्जन ( सुरमा ) नामक एक उपधातु; रसांजन या रसवती, दारूहल्दी के अष्टमांश काढ़े में अजामूत्र मिलाकर उससे संस्कारित आँजने की सलाई; नेत्र में दुख उत्पन्न करने वाली लोहे की गर्म सलाई; एक जाति का रत्न; एक बनस्पति विशेष ( अ० मा० ) ॥ अञ्जनक - ( १ ) अञ्जनवर द्वीप व अ
जनवर समुद्र का नाम है । ( आगे देखो शब्द 'अञ्जनवर', पृ० २१५ ) ॥
(२) रुचकवर नामक १३वें द्वीप के मध्य रुचकगिरि पर्वत पर के पूर्व दिशा के ८ कूटों में से छटा कूट जिस पर 'नन्दाant' नामक दिवकुमारी देवी बसती है ।
(शि०गा० ३०५, ६४८-६५६ )
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(३) नन्दीश्वर द्वीप के अञ्जन गिरि पर्वत का नाम (अ० मा० ) ॥ अञ्जन गिरि (अञ्जनाद्रि ) - (१) नन्दीश्वर नामक अष्टम द्वीप की पूर्वादि चारों दिशाओं के चार पर्वतों में से प्रत्येक पर्वत
का नाम ।
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