Book Title: Hindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Author(s): B L Jain
Publisher: B L Jain

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Page 273
________________ ( २०६ ) अशान परीषहजय वृहत् जैन शब्दार्णव अज्ञानवाद करते रहने पर भी ज्ञान प्राप्त न होने का अभाव । दुःख । अथवा ज्ञानावरणीय कर्म के प्रचर गृहीत मिथ्यात्व के एकान्त, विपरीत, उदयपश अपने ज्ञान की मन्दता या संशय, विनया और अज्ञान, इन ५ भेदों मूर्खता के कारण अपना अमादर या में ले एकअन्तिम भेद यह 'अबान मिथ्यातिरस्कार होने का कष्ट । यह 'अज्ञान परीषह' निम्न लिखित नोट १-दर्शन-मोहनी कर्म की मिथ्या२२ प्रकार की परीषहों में से २१ वीं है :-- त्व प्रकृति के उदय से जो औदयिक भाव का १. क्षुधा, २. तृषा, ३. शीत,४. उष्ण, | एक भेद 'मिथ्यात्व-भाव' संसारी आत्माओं में ५. दंशमशक,.६.नान्य,७. अरति, ८. स्त्री, उत्पन्न होता है उसी के निमित्त से अगृहीत ६. चर्या, १०. निषद्या, ११. शय्या. १२. | (निसर्गज), अथवा गृहीत (अधिगमज) आक्रोश,१३. वध, १४.याचना,१५.अलाभ, मिथ्यात्व का सद्भाव होता है। १६. रोग, १७. तृणस्पर्श, १८. मल, १६. मोट २–'मिथ्यात्व' शब्द का अर्थ है सत्कार पुरस्कार, २०. प्रशा, २१. अज्ञान, | असत्यता, असत्य या अयथार्थ श्रद्धान, २२. अदर्शन ॥ असत्यार्थ रुचि, अतत्व श्रद्धान, कुदेव कुगुरु ___ इनमें से प्रज्ञा और अशान, यह दोनों | कुशास्त्र या कुधर्म का श्रद्धान, इत्यादि । परीषह 'शानाघरणीयकर्म' के उदय से होती | ( नीचे देखो शब्द 'अज्ञानवाद')॥ हैं और १२ । गुणस्थान तक इनके सद्भाव अज्ञानवाद-क्रियावाद, अक्रियावाद, की सम्भावना है। अज्ञानवाद, और वैनयिकवाद, इन चार यह सर्व ही परीषह शारीरिक और | प्रकार के मिथ्यावादों में से एका मिथ्यामानसिक असह्य पीड़ा उत्पन्न करती वाद। हैं। इनका मनोविकार रहित धैर्य पूर्वक इस बाद के अनुयायी लोग जीवादि समभावों से सह लेना 'संवर' अर्थात् ९ पदार्थों के यथार्थ स्वरूप के अनुकूल या कर्मास्त्र के निरोध का तथाअनेक दुष्कर्मों प्रतिकूल किसी प्रकार की श्रद्धा नहीं रखते की निर्जरा (क्षय ) का कारण है। किन्तु अज्ञानवश ऐसा कहते हैं कि किसी इत. सू. अ. ९, सूत्र ८,९, १०, १३, । पदार्थ का स्वरूप दृढ़ता के साथ कौन चा. पृ. १२५ (परीषहजय प्रकरण) कह सकता है कि यह है या यह है, इस प्रज्ञान परीषहजय-धैर्य और समता प्रकार है या उस प्रकार है; अर्थात् उनका कहना है कि किसी पदार्थ का यथार्थ पूर्वक निर्विकृत मन से अज्ञान परीषह का स्वरूप कोई नहीं जानता। इस षाद के सहन करना । ( ऊपर देखो शब्द 'अज्ञान अनुयायी लोग शानशूभ्य काय क्लेशादि परीषह')॥ . तप को मुक्ति का कारण या उपाय मानते भज्ञानमिथ्यात्व-अज्ञानजन्य मिथ्या तत्वभवान, हिताहित या सत्यासत्य की इस अज्ञानवाद के निम्नलिखित ६७, परीक्षा रहित श्रद्धान, तत्व श्रद्धान का भा, विकल्प, या भेद हैं: Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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