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अङ्गप्रविष्ट श्रु तज्ञान वृहत् जेन शब्दार्णव
अप्रविष्ट श्रुतज्ञान प्रलापयुक्त (५) रतिकारक (६) अरतिकारक | है, मूर्तीक है अमूर्तीक है, सक्त है असक्त (७). उपधि या परिग्रहवर्द्धक (E) निकृति है, जन्तु है अजन्तु है, कपाष युक्त है अक(8) अप्रणति (१०) मोषक (११) सम्यक् (१२) पायी है, रागद्वपी है वीजरागी है, इच्छुक मिथ्या॥
है निरिच्छुक है, योगी है अयोगी घवन भेद ४--(१) सत्य (२) असत्य है, संकुट है असंतुष्ट है, नारकी है, ।। (३) उभय (४) अनुभय ॥
तिर्यंच है, मानव है, देव , बहिरात्मा है . सत्य १० प्रकार-(१) जनपद सत्य (२) अन्तरात्मा है, परमात्मा है, रोदनमा सम्मति सत्य (३) स्थापना सत्य (४) नाम विष्णु है, शिव है, महेश है, स्वयंभ है। सत्य (५) रूप सत्य (६) प्रतीत्य सत्य था इत्यादि इत्यादि अपने असंख्य नैमितिक! आपेक्षिकसत्य(७)व्यवहार सत्य (८)संभाधना | या अनन्त स्वाभाविक गुणोंकी अपेक्षा से। सत्य (६) भाव सत्य (१०) उपमा सत्य ॥ आत्मा अनेकानेक रूप है। आत्मा के इन ____ अनुभयवचन प्रकार (१) आमन्त्रणी
सर्व धर्मों का निरूपण इस 'पूर्व में किया
गया है। (२) आज्ञापनी (३) याचनी (४) आच्छनी (५) प्रशापनी (१) प्रत्याख्यानी (७) संशय- ८. कर्मप्रवादपूर्व-यह पूर्व १ करोष वचनी (८) इच्छानुलोम्नी (६) अनक्षरात्मिका॥ ८० लाख मध्यम पदों में है । इस में द्रश्य___ असत्य धचन के चार भेद-(१) सद्भूत
कर्म, भावकर्म, द्रव्य कर्म की ८ मूलप्रकृति, निषेधक (२) असद्भूत विधायक (३) परि- १४८उत्सरप्रकृति और अनेकानेक उत्तरोत्तर वर्तित (४) गर्हित, जिस के अन्तर्गत किसी प्रकृति रूप भेदों सहित उनके बन्ध, उदय, को सताने या देशमें उपद्रव फैलाने वाले या उदीरणा, सत्त्व, उत्कर्षण, अपकर्षण, उपहिन्सोत्पादक आरम्भादि में फँसाने वाले शमन, संक्रमण, निधत्ति, मिःकाचम, इन सावध पवन, तथा कर्कश, कटुक, परुष,
दश कारणों या अवस्थाओं का और उम निष्ठुर, परकोपिनी, मध्यकृशा, अभिमानिनी, का १४ गुणस्थानों में यथासम्भय होने न अनयंकरी, छेदंकरी, भूतबन्धकरी, यह
होने का तथा गुणस्थान अपेक्षा कर्मों दश प्रकार की अथवा अनेक प्रकार की अ.
के बन्ध, उदय सत्ता को संख्या और उनकी प्रिय भाषा गर्भित है।
व्युच्छित्ति, इत्यादि इत्यादि कर्म सम्बन्धी ___७. आत्मप्रधादपूर्व-यह पूर्व २६ करोड़
सर्व ही बातों का सविस्तार निरूपण है॥ ' मध्यमपदों में है। आत्मा जीव है पुद्गल ९. प्रत्याख्यानपूर्व--यह पूर्व ८४ लाख
है, कर्ता है अकर्ता है, भोक्ता है, अभोक्ता | मध्यमपदों में है। इस में नाम, स्था-| है, प्राणी है अप्राणी है, बक्ता है अवक्ता है, पना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव अपेक्षा सर्वज्ञ है अल्पश है, शानी है अज्ञानी है, | मनुष्यों के बल और संहनन आदि के चेतन है अवेतन है, व्यापी है अव्यापी | अनुसार यावजीव या कालमर्यादा से , संसारी है सिद्ध है, शरीरी है अशरीरी (यम या नियमरूप) सर्व प्रकार की है, रूपी है अरूपी है, साकार है मिराकार सदोष वस्तुओं और क्रियाओं का त्याग, ।।
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