________________
अजित
वृहत् जैन शब्दार्णव
अजित
क्रम संख्या
.
बोल
विवरण ,
३. मुख्य गणधर
सिंहसेन ४. अनुत्तरवादी मुनियों की संख्या
१२४०० ( बारह हजार चार सौ) ११ अङ्ग १४ पूर्व पाठी श्रुतकंवलियों की संख्या
३७५० (तीन हजार सात सौ पचास) केवालयों की संख्या
२०००० (बीस हजार) मनःपर्यय शानियों की संख्या १२४५० ( बारह हजार चार सौ पचास) ८. अवध शानियों की संख्या १४०० (नव हजार चार सौ) ९. आचारांगादि सूत्रपाठी शिक्ष
को (उपाध्यायों) की सख्या २१६०० (इकीस हज़ार छह सौ) १०. वैक्रियिक ऋद्धिधारियों की सख्या
२०४०० ( बीस हजार चार सौ) . . ११. मुनियों या सकलसंयमियों : की सर्व संख्या
१००००० (एक लाख) १२. सर्व सकलसंयमियों की २०००० ने समवशरण ही में केवलशान पाकर गति का विवरण
और ५७१०० ने अन्यान्य स्थानों से केवलज्ञान प्राप्त कर निर्वाण पद प्राप्त किया; २० सहन ने पंच अनुत्तर तथा नव अनुदिश विमानों में
और शष ने नव प्रेषक तथा १६ स्वर्गों में
जन्म पाया | १३. आर्यिकाओं की संख्या । ३२०००० (तीन लाख वीस हजार) १४. गणनी या मुख्य आर्यिका | प्रकुब्जा (फाल्गु) १५. श्रावकों की संख्या ३००००० (तीन लाख) १६. मुख्य श्रावक या श्रोता | सगर चक्री १७. श्रावकाओं की संख्या | ५००००० ( पाँच लाख) १८. देश संयमियों की सर्व संख्या ११२००००( ग्यारह लाख वीस हज़ार.) १६. समवशरण निर्वाण प्राप्ति से कितने दिन पूर्व विघटा
३० दिन | २०. समवशरण का स्थिति काल १ लक्ष पूर्णाङ्ग ११ वर्ष, १० मास ६ दिन कम
१ लक्ष पूर्व काल. | १४ निर्वाण ७३१. तिथि
| चैत्र शु०५
-
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org