________________
क
अजित वृहत् जैन शब्दार्णव
- अजितकेशकँवलि [३] मगधाधिपति अर्द्धचक्री नरेश अजितकेशवलि-यह अन्तिम तीर्थ'जरासन्ध' के एक पुत्र का नाम भी 'अजित' था जो 'महाभारत' युद्ध में बड़ी |.
ङ्कर श्री महावीर स्वामी' का समकालीन वीरता से लड़कर मारा गया है ।
एक मिथ्यात्व मत प्रचारक साधु था जो [४] २४ तीर्थङ्करी के भक जो २४
स्वयम् को वास्तविक तीर्थङ्कर बतलाकर 'यक्षदेव' हैं उन में से ९वें तीर्थङ्कर श्री
ग्रामीण अविद्य और अनभिज्ञ मनु'यों में 'पुष्पदन्त' के भक्त एक यक्ष का नाम भी
अपने सिद्धान्त का प्रचार कर रहाथा । श्री अजिता है।
महावीर तीर्थङ्कर को मायावी और उनकी __ नोट ३.-२४ तीर्थकरों के भक्त २४
दिव्य शक्तियों तथा दिव्य अतिशयी थमयक्ष क्रम से निम्न लिवित हैं:
स्कारों को इन्द्रजाल विद्या के खेल बताकर (१) गोमुव (२) महायक्ष (३) त्रिमुख
भोली जनता को उन से विमुख करने की (४) यक्षेश्वर (५) तुम्बर (६) पुष्प (७) मातङ्ग
चेष्ठा में अपनी सर्व शक्ति का व्यय कर | (E) श्याम (E) अजित (१०) ब्रह्म (११) ई
रहा था । यह एक वस्त्र धारी सिर मुंडे श्वर (१२) कुमार (१३) चतुमुख (१४) पा
साधुओं के रूप में रहता था। इसी के ताल (१५) किन्नर (१६) गरुड़ (१७) गन्धर्व
सरीखे उस समय गौतम बुद्ध' के अतिरिक्त (१८) खेन्द्र (१६) कुवेर (२०) वरुण (२१) | ४ साधु और भी थे जो स्वयम् को तीर्थङ्कर भृकुटि (२२) गोमेद (२३) धरण (२४) मातङ्ग॥ |
बतलाकर प्रायः इसी के सिद्धान्त का (प्रतिष्ठा सारोद्धार पत्र ६७-७०)
। प्रचार अलग अलग स्थानों में विचरते हुए ६०८ हो जीव मुक्ति लाभ करेंगे, अधिक नहीं।
(राज. अ. १० सू. १०, तत्वार्थ सार
। अ. = श्लो. ४१, ४२ की व्याख्या । उपयुक्त नियमों से अविरुद्ध कभी कभी ऐसी सम्भावना हो सकती है कि अढ़ाईद्वीप भर से अधिक से अधिक ६०८ के दुगुण १२१६ जीव तक एक ही दिन में या एक हो घटिका या इस से भी कुछ कम काल में निर्वाण प्राप्त कर लें । उदाहरणार्थ मान लो कि प्रत्येक ६ मास ८ समय के अन्तिम ८ समय में ६ मास का उत्कृष्ट अन्तर देकर आज प्रातःकाल ६०० जीवों ने निर्वाणपद पाया। पश्चात आज ही कुछ अन्तर देकर एक घटिका'या कुछ कम में अथवा सायंकाल तक या आज की रात्रि के अन्त तक के काल में (जो अगले या दूसरे ६ मास ८ समय का एक प्रारम्भिक विभाग है) अन्य ६०० जीवो ने भी सम्भवतः मुक्तिलाभ कर लिया और फिर इस दूसरे ६ मास ८ समय के शेष भाग में अर्थात् लगभग १ घटिका या १ दिन कम ६ मास तक एक जीव ने भी निर्वाणपद न पाया। ऐसी असाधारण अवस्था आपड़ने पर उपयुक्त नियम भी नहीं रटा और एक ही घड़ी या कुछ कम में अथवा एक ही दिन में १२१६ जीवों ने मोक्षलाभ भी कर लिया।
अतः जब एक दिन से भी कम में सम्भवतः १२१६ जीव तक मोक्षलाभ कर सकते है तौ महा पुण्याधिकारी परमोत्कृष्ट पद प्राप्त 'श्री अजितनाथ' के निर्वाण प्राप्ति के समय उनके साथ ( अर्थात् उसी दिन या उसी तिथि में ) केवल १००० जीवों का निर्वाण प्राप्त कर लेने का असाधारण अवसर आपड़ना किसी प्रकार नियम विरुद्ध नहीं है ॥
(कोष लेखक)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org