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( १८७ ) | अजित ब्रह्मचारी वृहत् जैन शब्दार्णव
अजितसेन पर समुद्र के निकट एक प्रसिद्ध नगर है और अधिक से अधिक १६० तक भी हो जाते | 'हनुमच्चरित्र' नामक संस्कृत ग्रन्थ लिखा। हैं। इन जघन्य, मध्य या उत्कृष्ट संग्याके तीर्थकल्याणालोयणा (कल्याणालोचना)नामक ङ्करों के नामों में २० नाम उपयुक्त ही होते । प्राकृत ग्रन्थ के रचयिता यही विद्वान हैं | हैं । शेष नामों के लिये कोई नियम नहीं है।। जिस में ४६ आर्य छन्द ( गाथा छन्द) और त्रि० गा० ६८१, व पं० जवाहिरलाल । ५ अनुष्टुप छन्द, सर्व५४ छन्द हैं । 'उत्सव
। कृत ३० चौबीसी पाठ पद्धति' और 'ऊर्ध्वपद्धति' नामक ग्रन्थ भी
नोट-आगे देखो शब्द 'अढ़ाईद्वीप' इन ही की कृति हैं॥
के नोट ४ के कोष्ठ १,२, विशेष नोटों सहित, | अजितब्रह्मचारी-पीछे देखो शब्द 'अ
और शब्द 'विदेहक्षेत्र' ॥
• अजितशत्र-मगध-नरेश 'जरासन्ध' के जित ब्रह्म॥
'कालयवन' आदि अनेक पुत्रों में से एक भजित वीर्य-विदेह क्षेत्र में सदैव रहने | . का नाम । घाले २० तीर्थङ्करोंके २० नामों में से एक ॥ · यह महाभारत युद्ध में पाण्डवों के |
नोट१-विदेह क्षेत्र के २० तीर्थङ्करों के | हाथ से बड़ी वीरता के साथ लड़ कर कुशाश्वत नाम-(१) सीमन्धर (२) युगम
रुक्षेत्र के मैदान में काम आया॥ न्धर ( ३ ) बाहु (४) सुबाहु (५) संजात
__ (हरि० सर्ग ५२) (६) स्वयम्प्रभ (७) ऋषभानन (E) अनन्त- अजितषणाचार्य-विक्रम की १२ वीं या वीर्य (६) सूरप्रभ (१०) विशाल कीर्ति (११) १३ वीं शताब्दी के एक छन्द-शास्त्रश दिगवजूधर ( १२ ) चन्द्रानन (१३) भद्रबाहु म्बराचार्य ॥ (१४) भुजंगम (१५ ) ईश्वर ( १६ )नेमिप्रभ इन्होंने अलङ्कार-चिन्तामणि, छन्दशास्त्र, (१७) वीरषेण ( १८ ) महाभद्र ( १६) देव- वृत्तवाद, और छन्द-प्रकाश, आदि कई यश (२०) अजितवीर्य । (आगे देखा शब्द अच्छे अच्छे प्रन्थ रचे ॥ 'अढ़ाईद्वीप पाठ' के नोट ४ का कोष्ठ १,२)॥
(दि० प्र० ४ पृ०१) __ नोट २-अढ़ाईद्वीप के पांचो मेरु | अजितसागर-स्वामी-यह सिंह संघ | सम्बन्धी ३२, ३२ विदेह हैं। इन ३२ में से
में एक प्रसिद्ध विद्वान् हुए ॥ १६, १६ तो प्रत्येक मेरु को पूर्व दिशाको और __सिद्धान्तशिरोमणि' और 'षटखण्ड१६,१६ पश्चिम दिशा को हैं। पूर्व और पश्चिम
भूपद्धति'नामक ग्रन्थोंके यह रचयिता थे।। दिशा के १६. १६ विदेह भी दक्षिणी और
( देखो प्र० वृ० वि० च०)। उत्तरी इन दो दो विभागों में विभाजित हैं जिससे प्रत्येक विभाग में ८, विदेह हैं । इन
(दि० प्र०७ पृ० ३) प्रत्येक भाग के ८, = विदेहों में कम से कम | अजितसेन-(१) हस्तिनापुर नरेश ॥ एक एक तीर्थकर और अधिक से अधिक - यह काश्यप-गोत्री थे। इन की 'वाल८, ८ तीर्थङ्कर तक सदैव विद्यमान रहते हैं | चन्द्रा' (प्रियदर्शना ) रानी से महाराज जिस से सर्व १६० विदेहों में कम से कम २० विश्वसेन'का जन्म हुआ जिनकी महारानी
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