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( १९३ ) अजीवगत हिंसा बृहत् जैन शब्दार्णव
अजीवगत हिंसा ३. श्वासोच्छूनाल;
| कराई हुई हिंसा और ९ प्रकार की मनुमो४. आयु।
दित अर्थात् अनुमोदन या प्रशंसा की हुई | इन १० में से मनोबल और पाँचों- | हिंसा, एवम् २७ प्रकार की हिंसा है ॥ इन्द्रिय, यह छह प्राण जो स्वपर पदार्थ को यह २७ प्रकार की क्रोधवश हिंसा, ग्रहण करने में समर्थ लब्धि नामक भावेन्द्रिय | २७ प्रकार की मानवश हिंसा, २७ प्रकार की रूप हैं, वह 'भाव-प्राण' हैं और शेष चार मायाचारयश हिंसा और २७ प्रकार की 'द्रव्यप्राण' हैं।
लोभवश हिंसा, एवम् सर्व १०८ प्रकार की | (गो० जी० १२८, १२९, १३०) | हिंसा है ॥ ___नोट ४.-हिंसा के उपयुक्त दो भेदों | उपयुक्त १०८ प्रकार की हिंसा अमें से पहिली जीधगत हिंसा या जीवाधिक- | नन्तानुबन्धी कषायचतुष्कवश, अप्रत्याख्यारण हिंसा के निम्न लिखित १०८ या ४३२ | नावरणी कषायचतुष्कषश, प्रत्याख्यानावभेद हैं:
रणी कषायचतुष्कवश, या संज्वलन कषाय१. जीवगत हिंसा के मूलभेद (१) सं- चतुष्कवश होने से ४३२ प्रकार की है। प्ररम्भजन्य हिंसा (२) समारम्भजन्य हिंसा (३) कारान्तर से इसके अन्य भी अनेक भेद हो आरम्भजन्य हिंसा, यह तीन हैं । इन में से | सकते हैं । प्रत्येक प्रकार की हिंसा मानसिक, वाचनिक उपरोक्त १०८ भेदों में से प्रत्येक भेद
और कायिक इन तीन प्रकार की होने से इस का या यथाइच्छा चाहे जेथवें भेद का अलग हिंसा के ३ गुणित ३ अर्थात् ६ भेद हैं ॥ अलग नाम निम्न लिखित प्रस्तार की सहा
यह प्रकार की कृत अर्थात् स्वयम् | यता से बड़ी सुगमता से जाना जा सकता की हुई हिंसा, ६ प्रकार की कारित अर्थात् | है:
जीवगत हिंसा के १०८ भेदों का प्रस्तार :
प्रथमपंक्ति
संरम्भजन्य हिंसा १ समारम्भजन्य हिंसा २ आरम्भजन्य हिंसा ३
द्वितीय पंक्ति | मानसिक
. याचनिक
३ कायिक
तृतीय पंक्ति | स्वकृत
० कारित
| अनुमोदित
१८
लोभ५४ वश
चतुर्थ पंक्ति | कोधवश
. मानवश
-
२७ मायावश
अभीप्ट भेद जानने की विधि-प्रमाण जोड़ इस प्रस्तार की चारों पक्तियों (१) जीवगत हिंसा के १०८ भेदों में के जिन जिन कोष्ठकों के अङ्कों, या अङ्कों और से जेथयों भेद हमें जानना अभीष्ट है उसी | शून्यों का हो उसी उसी कोष्ठक में लिखे
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