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अजितजय। । वृहत् जैन शब्दार्णव
अजितञ्जय कर रहे थे। इनमें पहिला 'मस्करी' (मंख- 'अजितजय' अजितराम के माम से भी लि गोशाल), दूसरा 'पूरण' ( पूरनकश्यप), प्रसिद्ध था । लक्ष्मण के शरीरोत्सर्ग के परतीसरा 'पकुधकच्चायन' और चौथा 'संजय- चात् राम ने लक्ष्मण के बड़े पुत्र पृथ्वीसुन्दर' बेलट्ठि' था । इन कल्पित तीर्थङ्करों में से (पृथ्वी चन्द्र ) को तो राज्य दिया और पहिले दो सर्वथा वस्त्र त्यागी दिगम्बरी महारानी सीता के गर्भ से उत्पन्न लवांकुश वेश में रहते थे । समय की आवश्यकता | आदि (अनङ्ग लवण और मदनांकुश आदि)|
और जनता के विचारों की अधिकतर अनु- | अपने बड़े पुत्रों के विरक्त होकर मुनि कूलता देख कर, अर्थात् वैदिक यज्ञादि | दीक्षा ले लेने के कारण अपने इस छोटे पुत्र क्रियाकांडों में होने वाली जीव हिंसा की 'अजितञ्जय' को युवराज बनाया और आधिक्यता प्रायः असह्य हो जाने से मिधला देश (तिहुत, विहार ) का राज्य यद्यपि यह सर्व ही साधु हिंसा के दिया। इसने अपने पूज्य पिता के मुनिव्रत पूर्ण विरोधी हो कर 'अहिंसा' का प्रचार धारण करने के समय श्रीशिवगुप्त कैवल्यकर रहे थे तथापि इनका मूल सिद्धान्त शानी से धर्मोपदेश सुनकर श्रावक के प्रायः चारवाक्य सिद्धान्त से बहुत कुछ व्रत ( गृहस्थधर्म सम्बन्धी व्रत मिलता जुलता नास्तिकता का फैलाने नियमादि ) ग्रहण किये ॥ घाला था । उन का सिद्धान्त था कि "सर्व | (उत्तर पु. पर्व ६८, श्लोक ७०४-७१३)। प्रकार के दुखों का अनुभव 'शान' द्वारा नोट-पद्म पुराण के रचयिता 'श्रीहोता है। अतः ज्ञान सर्वथा नष्ट हो जाना रविषेणाचार्य' का मत है कि राम और | ही दुखों से मुक्ति दिलाने वाला है और लक्ष्मण के सर्व ही पुत्रों ने मुनि दीक्षा इस लिये हमारा धास्तविक और अन्तिम | धारण कर ली थी। इस लिये राम ने अपने ध्धेय यही होना चाहिये । जीवों का पुनरा- एक पौत्र को जो 'अनङ्गलवण' का ज्येष्ठ पुत्र गमन अर्थात् बार बार जन्म मरण नहीं था राज्य दिया ॥ होता । वर्ण भेद सर्वथा निरर्थक है । इन्द्रि
(२) मुनिसुव्रतनाथ' तीर्थङ्कर के मुख्य | यों को उन के विषयों से रोकना और निर
श्रोता का नाम भी अजितञ्जय था ॥ र्थक आत्मा को कष्ट पहुँचाना अज्ञता है।
(३) १६वें तीर्थङ्कर श्री 'शान्तिनाथ' इच्छानुसार सर्व प्रकार के भोग विलास
के नानाका नाम भी जो गान्धार (कन्दहार) करना कोई अनुचित कार्य नहीं है। पुण्य |
देश के राजा थे'अजितञ्जय ही था । पाप और उन का फल कुछ नहीं है।
___इन की राजधानी 'गान्धारनगरी' इत्यादि ॥
थी। इन को पुत्री का नाम 'ऐरा' अजितञ्जय-इस नाम के निम्नलिखित
था जिसने 'सनत्कुमार' नामक
तृतीय स्वर्ग से आकर महाराज 'अजितकई इतिहास प्रसिद्ध पुरुष हुए:
अय' की रानी 'अजिता' के उदर से जन्म (१) सीता से उत्पन्न, राम के = | लिया और जो हस्तिनापुर के राजा 'विपुत्रों में से सर्व से छोटे पुत्र का नाम; यह श्वसेन' को विवाही गई थी। इसी 'ऐरा
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