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( १८४ ) अजितदेव वृहत् जैन शब्दार्णव
अजितनाभि मक दूसरे काल के २१ सहस्र वर्ष में से २०, में हुए २४ तर्थङ्करों में से द्वितीय तीर्थङ्कर सहस्र वर्ष तक इस क्षेत्र में धर्म, राजा और (पीछे देखो शब्द 'अजित' ) । अग्नि का लोप रहेगा। इतने समय तक लोग अजितनाथ पुगण-'अरुणमणि पंडित पशु समान जीवन बितायेंगे । वर्तमान पंचम काल के अन्त में मनुष्यों की उत्कृष्ट आयु
रचित श्री अजितनाथ तीर्थङ्कर का चरित्र
( आगे देखो शब्द 'अजितपुराण') ॥ केवल २० वर्ष की, छटे काल के अन्त में केवल १६ वर्ष की, पश्चात् उत्सर्पिणी के भजितनाभि ( जितनाभि, त्रि० गा० प्रथम काल के अन्त में २० वर्ष की और दूसरे । ८३६ )-वर्तमान अवसर्पिणी काल के गत के अन्त में १२० वर्ष की होगी । ( पीछे देखो
चतुर्थ विभाग में हुए ११ रुद्रो में से नवम शब्द ‘अग्निल' और 'अग्नि' )॥
रुद्र का नाम: त्रि० गा० ८५७-८६१, । उत्तर पु०पर्व ७६ श्लोक ४३१-४३७ ॥
___ यह पन्द्रहवें तीर्थङ्कर 'श्रीधर्मनाथ' के |
तीर्थ काल में, जिनका निर्वाण गमन नोट ३-प्रथम तीर्थङ्कर श्री ऋषभदेव |
अन्तिम तीर्थकर श्री महावीर' के निर्वाण के पुत्र ‘भरत-चक्रवर्ती' की सवारी के रथ का
काल से लग भग ६५८४००० वर्ष अधिक नाम भी अजितञ्जय' था॥
३ सागरोपम काल पहिले हुआ था, अजितदेव-यह एक प्रसिद्ध श्वेताम्बरा | विद्यमान थे। अजितनाभि के शरीर की चार्य थे जिन्होंने वि.सं.१२०४ में फलवर्धि' ऊँचाई २८ धडप ( ५६ गज) और आयु ग्राम में चैत्यबिम्ब की प्रतिष्ठा की और लगभग २० लाख वर्षकी थी। पांच लाख आरासण में 'श्री नेमनाथ' की प्रतिष्ठा | . बर्ष से कुछ कम इनका कुमार काल रहा। की । इन्होंने 'स्याद्वादरत्नाकर' नामक | फिर इससे कुछ कम संयम काल रहा एक श्वेताम्बर जैनग्रन्थ ८४००० श्लोक | अर्थात् दिगम्बर-मुनि-व्रत पालन करते रहे। प्रमाण रचा । वि० सं० १२२० में इनका इसी अवस्था में इन्हें ११ अङ्ग १० पूर्व तक स्वर्गवास हुआ। साढ़े तीन करोड़ श्लोक | का ज्ञान प्राप्त होगया । पश्चात् किसी -प्रमाण अनेक ग्रन्थों के रचयिता श्री | कारण वश मुनिपद से व्युत होकर आयु 'हेमचन्द्रसूरि' इन ही 'अजितदेवसूरि' के | के अन्त तक शेष काल असंयमी रहे । इस समय में विद्यमान थे जो 'श्री देवचन्द्रसूर'
असंयम अवस्था में काम वासना की आधिके शिप्य और गुजरात देशान्तर्गत 'पा
क्यता और रौद्र परिणामी रहने से नरक टण के राजा 'कुमारपाल' के प्रतिबोधक'
आयु का बन्ध किया जिससे मृत्यु काल
· में भी कृष्ण लेश्यायुक्त रौद्र परिणाम (पीछे देखो शब्द 'अजयपाल'नोटो सहित)
रहने के कारण शरीर परित्याग कर
'पङ्कप्रभा' ( अंजना ) नामक चतुर्थ नरक | अजितनाथ-वर्तमान अवसर्पिणी के
भूमि में जा जन्मे ! यहाँ की कुछ कम | 'दुःखमा सुखमा' नामक गत चतुर्थ काल | १० सागरोपम कोल की आयु पूर्ण करने |
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