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अथितयोनि वृहत् जैन शब्दार्णव
अचेलक आकारापंक्षित तीन भदौ अर्थात् शं बावर्त्त, अवित-शीत-विवृत ,
देखो शब्द कूर्मोन्नत और वंशपत्र में से प्रत्येक पर | अचित-शीत-संवृत । और गर्भज, उप्पादज, सम्मूर्छन, इन | अचित-शीतोष्ण-विवृत
“अचिततीन प्रकार के अन्मों में से प्रत्येक पर
योनि "॥ तथा सर्व संसारो जीपों में ऐकेन्द्रिय, द्वी
अवित-शीतोष्ण-संवृत योनि निष्टय आदि के अनेक जाति भेदों पर यथा- भविरा ( अइरा, पेरा)-१६वे तीर्थकर सम्भय लगाने से सर्व योनियों के विशेष | श्री शान्तिनाथ की माता का नाम ( देवो भेद ८४ लक्ष हो जाते हैं जिन का विवरण शब्द 'अइरा' और ऐरा')। (अ. मा.)॥ “योनि" शब्द के साथ यथास्थान मिलेगा॥ अचतन-चेतनारहित पदार्थ, अजीव या
(गो. जी. गा०८१-८) ___ जड पदार्थ षट द्रव्यों में से एक जीवद्रव्य नरेट २.-उपाद जन्म वाले सर्व को छोड़ कर अन्य पाँचों द्रव्य अर्थात् जीवों की, अर्थात् सर्व देव गति और नरक
पुद्गलद्रव्य, धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, आगति में उत्पन्न होने वालों की और कुछ
काशद्रव्य और कालद्रव्य अचेतनद्रव्य' हैं। सम्मर्छन जीवों की “अचितयोनि' होती अचेल-(१) चेलरहित अर्थात् वस्त्ररहित, है। गर्भज जीवों में ( जिनके पोतज, जरायुज
वस्त्रत्यागी ॥ . . या जेलज, और अण्डज, यह तीन भेद होते
___ (२) अल्प वस्त्रधारी (अ. मा.)॥ हैं) "अचित-योनि'' किसी की भी नहीं |
| अचेलक-(१) विजयार्द्ध पर्वत पर के एक होती॥
योनि के उपर्युक्त २१ भेदों में से (१) नगर का नाम जिसका स्वामी 'अमितवेग' अचित शीत-संवृत और (.) अचित-उष्ण नामक राजा था। इसी राजा की पुत्री संवृत, केवल यह दो ही भेद उप्पाद जन्म | 'मणिमती' ने लङ्कानरेश 'रावण' द्वारा वालों के–देव और नारकियों के-हो हैं। अपनी १२ वर्ष में सिद्ध की हुई विद्या हसम्मूर्छन जन्म वाले पहेन्द्रिय जीवों की रण किये जाने से निदान बन्ध युक्त योनि उपयुक्त २१ भेदों में से १,३५,७.६.११ शरीर त्याग करके रावण' की पटराणी १३. १६, १६ इन संख्या वाले कंवल नव भंदी 'मन्दोदरी' के उदर से जन्म लिया और की और शंप ईन्द्रियादि की योनि २४,६, मिथिलानरेश 'जनक' की रानी 'विदेहा' ८,१०,१२, १४.७,२०, इन संरया वाल कंवल की पुत्री 'सीता' नाम से प्रसिद्ध होकर नव ही भों की होती है । और गर्भ ज जीवों और श्री रामचन्द्र' को स्वयम्बर द्वारा की योनि उपयुक्त २१ भेदों में से १५, ८.२१
विवाही जाकर अन्त में रावण के नाश इन संख्या पाठे, अर्थात् (१) सचिाबित. का कारण हुई ॥ शीत-संवृतधियत (.) सचितावित उष्ण- (उ० पु० पर्व ६८, श्लोक १३-२७)॥ संवृत विवृा और (३) सविता-धित शीतो. (२) चलरहित या कुत्सित अल्पमूल्य पण-संवृत विवृतावल इन तीन ही भेदों की के वस्त्र वाला (अ. मा. अचेलअ)। होती है।
(३) वस्त्र न रखने का या स्वेत मामो(गो०जी० ८५-८७) पेत अल्पवस्त्र रखने का आचार; प्रथम
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