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अजयपाल
वृहत् जैन शब्दार्णव
अजयपाल
'मूलराज' ने चावड़ावंशियों से गुजरात | पहिली यात्रा में प्रभु की पूजा में चढ़ाये, २१ छीन कर अणहिल्लपाटन को अपनी राजधानी महान ज्ञानभंडार स्थापित किये। बनाया। यहां इस वंश का राज्य वि० सं० (३) ७२ लाख रुपयावार्षिक का राज्य- | १२६२ तक लगभग ३०० वर्ष रहा । पश्चात् कर श्रापकों का छोड़ा और शेष प्रजा के लिये यहां बघेलों ने अपना राज्य जमा कर वि. | भी कर बहुत हलका करदिया। सं० १३५३ तक शासन किया। वि० सं० (४) धन हीन व्यक्तियों की सहायतार्थ १३५३ या १३५४ में यह राज्य दिल्ली के बाद एक करोड़ रुपया प्रति वर्ष दिया।। शाह अलाउद्दीन खिलजी के अधिकार में (५) पुत्रहीन विधवाओं का धन जो चला गया।
पुराने राज्य नियमानुसार राजभंडार में जमा नोट २.-इन चालुक्यवंशियों में कई किया जाता था और जिसकी संख्या लगभग राजा जैनधर्मी हुए जिन में 'कुमारपाल' सब | ७२ लाख रु० वार्षिक थी उसे बड़ी निर्दयता से अधिक प्रसिद्ध है। इस का जन्म वि० सं० और अनीति का कार्य जान कर लैना छोड़ ११४२ में और राज्य अभिषेक वि० सं० | दिया। ११६६ में ५० वर्ष की वय में हुआ । इस ने (६) जुआ, चोरी, मांस भक्षण, मद्य'श्री हेम बन्द्र' के तात्विक सत्-उपदेशों पर पान, धेश्या सेवन,पर स्त्री रमण, और शिकार मुग्ध होकर और वैदिक धर्म को त्याग कर खेलना, यह सप्त दुर्व्यसन अपने राज्य भर में अपनी युवा अवस्था ही में जैनधर्म को ग्रहण से लगभग सर्वथा दूर कर दिये। कर लिया । पश्चात् वि० सं० १२१६ के मा- |
| (७) अहिंसा धर्म का प्रचार न केवल र्गशिर मास की शुक्लपक्ष की दोयज को | अपने ही अधिकार घर्ती देश में किया किन्तु श्रावकधर्म के द्वादशवत भी ग्रहण कर लिये॥ भारतवर्ष के कई अन्य भागों में भी यहां के
इस भाग्यशाली धर्मज्ञ दयाप्रेमी अधिपतियों को किसी न किसी प्रकार अपना राजा के सम्बन्ध में निम्न लिखित बातें ज्ञा- मित्र बनाकर बड़ी बुद्धिमानी से किया और तन्य हैं:
इस तरह भारत वर्ष के १८ छोटे बड़े देशों में (१) साढ़े तीन करोड़ श्लोक प्रमाण म- | जीव दया का बड़ी उत्तमर्राति से पालन होने होन जैन ग्रन्थों के रचयिता 'कलिकालसर्पज्ञ' लगा और धर्म के नाम पर अनेक देवताओं उपाधि प्राप्त "श्री हेमचन्द्र सूरि" इसके पूज्य के सन्मुख जो लाखों निर अपराध मूक पशुओं धर्म गुरु थे।
का प्रतिवर्ष बलिदान होता था वह सब दूर (२) इसने अपने राज्यकाल में १४०० | होगया। प्रासाद (जिनालय ) बनवाये.१६००० मन्दिरों (E) शान्तिमय अहिंसात्मक धर्म फैलाका जीर्णोद्धार किया, १४४४ नये ने के प्रबन्ध में जिन जिन व्यक्तियों को किसी जिन मन्दिरों पर स्वर्ण कलश चढ़ाये, ६८ प्रकार की आर्थिक हानि पहुँची उन सब को | लाख रुपया अन्यान्य शुभ दान कार्यों में व्यय | यथा आवश्यक धन दे देकर प्रसन्न कर दिया किया, सात बार संघाधिपति होकर तीर्थ | था। यात्रा की जिनमें से ९ लाख रुपये के नव रल (E) गरीबों का कष्ट दूर करने को इसने
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