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.। १६४ ) अजाखुरी वृहत् जैन शब्दार्णव
अजाखुरी तलहटी से उत्तर दिशा को लगभग ४ मील की चढ़ाई उतराई सहित १६ मील के लगभग चदूरी पर है । जूनागढ़ स्टेशन से दक्षिण दिशा | लना पड़ता है। को 'घेरावल' स्टेशन केवल ५२ मील के लग । नोट ५.-नीचे से ढाई मीलकी चढ़ाई। भग है जो समुद्र के किनारे पर है और जहां के पश्चात् सोरठमहल' आता है। यहाँ आज से हिन्दुओं का प्रसिद्ध 'सोमनाथ-मन्दिर' का कल दो दुकानें, एक स्वेताम्बर धर्मशाला स्टेशन केवल ढ़ाई तीन मील ही की दूरी पर | और २७ स्वेताम्बर जैन मन्दिर हैं जिन में समुद्र तट पर ही है। यहां से 'पोर बन्दर' ७ मन्दिर अधिक मनोज और बढ़िया हैं। होते हुए द्वारकापुरी जाने के लिये जहाज़ द्वारा यहां से कुछ दूर आगे एक कोट में दो दिगसमुद्री मार्ग लगभग १२५ ( सवा सौ) मील म्बर जैन मन्दिर बड़े रमणीय और विशाल उत्तर-पश्चिमीय कोण को है। द्वारका जाने के हैं जिन में बड़ी मनोज्ञ और विशाल प्रतिलिये जूनागढ़ स्टेशन से उत्तर दिशा को जैत- माऐं विराजमान हैं । पास ही में श्रीमती लसर या जैतपुर जङ्कशन होते हुए 'पोरबंदर' | 'राजुल कुमारी' की एक गुहा है जहां पर इस तक रेल द्वारा भी जा सकते हैं।
कुमारी ने तपश्चरण किया था। इस गुहा के नोट ३.-आज कल यद्यपि "द्वारका" अन्दर इस कुमारी की एक प्रतिमा और की दूरी "गिरिनार पर्वत" से लगभग १०० चरणपादुका है। मोल या ५० क्रोश है पर श्री नेमनाथ के । यहां से लगनग एक मील की ऊंचाई समय में 'द्वारिका' की बस्ती समुद्र के तट से | पर दूसरी और तीसरी टोंक हैं । रास्ते में | गिरनार पर्वत की तलहटी के निकट तक थी, | खेताम्बर मन्दिर, हिन्दुओं के मन्दिर मकान, ! क्योंकि उस समय के इतिहास से पाया जाता | उनके साधुओं की कुटी और ठाकुरद्वारा है कि द्वारकापुरी १२ योजन लम्बी और | आदि पड़ते हैं । इन दूसरी तीसरी टोको पर योजन चौड़ी आबाद थी। एक योजन ४ श्री नेमिनाथ,ने तप किया था। यहां पर क्रोश का और एक शास्त्रीय क्रोश ४००० गज़ उन की चरणपादुका बनी हैं । यहां ही एक या लगभग २। मील का है। अतः द्वारिका की 'गोरक्षााथ जी' की धनी भी है ॥ लम्बाई का परिमाण लगभग १०८ मील था । यहां से लगभग एक मील आगे पहुँन
नोट ४.-जूनागढ़ में दिगम्बर जैनों कर चौथी और पांववी टीमें हैं। चौथी टोक का आज कल एक भी घर नहीं है परन्तु गिर- श्री नेमिनाथ के कैवल्य ज्ञान प्राप्ति का, और मार की तलहटी में एक दिनम्बर और एक स्वे- पांचवी टोक निर्वाण पद प्राप्ति का स्थान ताम्बर धर्मशाला है। दो मन्दिर भी हैं । यहांसे हैं। प्रत्येक टोंक पर एक एक प्रतिमा और 'गिरनार' पर्वत पर चढ़ने के लिये एक द्वार में चरण पादुका बड़ी मनोज्ञ बनी हैं। होकर जाना पड़ता है जहाँ राजा की ओर से यहां से आगे लगभग दो मील नोचे को प्रति मनुष्य एक आना कर बंधा है। और जहां उतर कर बड़ा सुन्दर और रमणीय “सहस्रासे पाँचवीं टोंक ('सहस्रामवन') तक सीढ़ियाँ प्रवन" है जहां श्रीनेमिनाथ ने अन्तरङ्ग और बनी हुई हैं जिनकी सया ७ सहस्र से कुछ | वाह्य सर्व परिग्रह त्याग कर दिगम्बरी दीक्षा अधिक है । पहाड़ की सर्व बन्दना करने में धारण की थी। यहां दो देहरी, तीन चरण
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