________________
-
अजरषद वृहत् जैन शप्दार्णवः
अजाखुरी प्रकार सर्व अनोज जो उसने बांटा उस की पूर्वक प्रातःकाल में चारों घातिया कर्मी तौल लगभग ६ करोड ६६ लाख मन थी. का नाश कर कैवल्यज्ञान की प्राप्ति की।
और साथ ही इसके स्वर्ण मुहरे जो उसने तत्पश्चात् ६६६ वर्ष = मास ४ दिन देश बांटी उन की संख्या लगभग साढ़े चार क- देशान्तरों में विहार करते हुए अनेकानेक रोड़ थी।
भग्य प्राणियों को धर्मामृत पिला कर बगवासी, कलकत्ता त ० १६. ११. । इसी गिरिनार पहाड़ी पर आकर और । १८६६ ई०, पृ०२ कालम ६.
३२ दिन शुक्ल ध्यान में बिता कर आषाढ़ अजरपद-जरा (वृद्धावस्था) वर्जितपद,
शुक्ला ७ को अष्टमी तिथि में रात्रि के प्रथम
पहर के अन्तर्गत चित्रा नक्षत्र का उदय अमरपद, देवपद, मुक्तिपद. अर्थात् वह
होने पर इसी पहाड़ी पर से पर्यत आसन | परमपद जिले पाकर अनन्तकाल तक
लगाये ६६8 वर्ष ११ मास. २ दिन की फिर कभी वृद्धावस्था (बुढ़ाप.) का
घय में परम पवित्र निर्वाणपद प्राप्त किया। मुख न देखना पड़े । (देखो शब्द 'अक्षय
इसी पर्वत पर जूनागढ़ाधीश महाराजा पद' और 'अक्षयपदाधिकारी' ) ॥
'उग्रसेन' की सुपुत्री 'राजुलमती' ने भी भनाखुग-(१) सुराष्ट्र (गुजरात) देश जिसके साथ श्री नेमनाथ के विवाह सके एक प्रसिद्ध राजा राष्ट्रवर्द्धन' की राज म्बन्ध के लिये वाग्दान हो चुका था आधानी जिसका दूसरा नाम गिरिनगर तथा र्यिका के व्रत धारण कर तपश्चरण किया 'गिरिनार' भी था जिसके नाम पर वहां और स्त्रीलिङ्ग छेद समाधिमरण पूर्वक की पहाड़ी भी 'गिरिनार' के नाम ही से शरीर छोड़ सुरपद पाया । ( हरि. सर्ग प्रसिद्ध थी और आज तक भी इसी नाम ६०, श्लोक ३४०, नेमि पु० अ०९)॥ .. से प्रसिद्ध है। इसी पहाड़ी का नाम इसी गिरिनार पर्वत पर से वर्तमान | 'ऊर्जयन्तगिरि' भी है। यह पहाड़ी जैनियों अवसर्पिणीकाल के चतुर्थ विभाग में श्री का तो एक बहु प्रसिद्ध तीर्थ है ही,पर यह नेमिनाथ, शंबुकुमार, प्रद्युम्नकुमार, और हिन्दुओं का भी एक तीर्थ है।
अनिरुद्धकुमार आदि बहत्तर करोड़ सात २२वें तीर्थकर श्री नेमिनाथ' ने पूरे सौ (७२००००७००) मुनियों ने उग्रोन तप३०० वर्ष की वय में अपनी जन्मतिथि और श्वरण द्वारा अष्ट कर्म नाश कर सिद्धपद जन्म नक्षत्र के दिन श्रावण शु०६ को चित्रा (मोक्षपद) प्राप्त किया, अतः यह परम नक्षत्र में सायंकाल के समय इसी 'गिरि- पचित्र क्षेत्र सिद्ध क्षेत्र' कहलाता है। नार' पर्वत या 'ऊर्जयन्तगिरि' पर 'सह- नोट १:-श्री नेमनाथ का निर्वाण त्रास यन' में षष्ठोपवासः (बेला, द्वला) श्री महावीर स्वामी के निर्वाण से ८३९९६ व्रत धारण कर दिगम्बरी दीक्षा धारण की वर्ष ३ मास और २२ दिन पूर्व हुआ। थी और यहां ही पूरे ५६ अहोरात्रि उप्रोन नोट २.-जूनागढ़ काठियावाड़ (गु. तपश्चरण कर आश्विन शु. १ को चित्रा | मरात.) में एक देशी रियासत की राजधानी नक्षत्र ( जन्म नक्षत्र ) में षष्ठोपवास | और रेलवे स्टेशन है जो गिरनार पर्वत की।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org