Book Title: Hindi Sahitya Abhidhan 1st Avayav Bruhat Jain Shabdarnav Part 01
Author(s): B L Jain
Publisher: B L Jain

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Page 230
________________ अजातशत्र वृहत् जैन शब्दार्णव अजातशत्र शत्र (५) गजकुमार या दन्तिकुमार और लिये बन्दीगृह में गया । परन्तु महाराजा (६) मेघ कुमार थे । यह अपने छहों लघु | श्रेणिक ने दूर से ही इसे अपनी ओर भ्राताओं से अधिक भाग्यशाली और वीर शीघ्रता से आता हुआ देग्न कर और परन्तु अपनी पूर्व अवस्था में दयाशून्य यह समझ कर कि यह करचित्त इस और अधर्मी था । अजातशत्रु से बड़ा समय मुझे अवश्य कोई अधिक कष्ट देने इसका एक और भाई भी था जो श्रेणिक के लिये आरहा है तुरन्त अपघात कर की दूसरी रानी 'नन्दश्री' के गर्भ से अपनी लिया जिस से कुणिक और उसकी माता ननिहाल में उत्पन्न हुआ था। इस का | चेलनाको अति शोक हुआ । पश्चात् नाम 'अभयकुमार' था जो बड़ा चतुर, | जैनधर्म की अटल श्रद्धालु महारानी पटुभुद्धि, दूरदर्शी और धर्मज्ञ था । 'घेलना' ने अपनी छोटी सहोदरा महाराजा ने इसी को युवराज पद दिया बहन 'चन्दना' के पास जा कर, जो बाल था और अपनी सेना का सेनापति भी ब्रह्मचारिणी परम तपस्वनी आर्यिका थी, नियत किया था, परन्तु जब 'अजातशत्रु आर्यिका (गृहत्यागी स्त्री) के व्रत नियकुणिक' के अनुचित वर्ताव से जितशत्रु मादि धारण कर लिये। के अतिरिक्त अन्य भ्राताओं के गृहत्यागी वीर निर्वाण से ८ वर्ष पूर्व और गौतम हो जाने पर महाराजा श्रेणिक ने कुणिक बुद्ध के शरीरोलर्ग से १० वर्ष पूर्व को राज्य पाने की अति लालसा में (सम्वत् विक्रमी से ४६६ वर्ष और सन् प्रसित देख कर और अपनी आयु का ईस्वी से ५५३ वर्ष पूर्व ) "अजातशत्रु''। शेष समय धर्मध्यान में बिताने के शुभ ने मगध देश का राज्य पाकर विदेह देश | विचार से राज्य भार सब कुणिक ही को या तिरहुत प्रान्त, और अङ्गदेश को भी सौर दिया तो इस अधर्मी ने इस पर भी अपने राज्य में मिला लिया और पिता के | सन्तुष्ट न हो कर थोड़े ही समय पश्चात् पश्चात् इसने राजगृही' की जगह 'चम्पाअपने धर्मज्ञ पूज्य पिता को एक 'देवदत्त' पुरी' को अपनी राजधानी बनाया। पिता नामक गृहत्यागी के कहने से काँटेदार की मृत्यु के पीछे उसी के शोक में जब कुछ काठ के एक कठहरे में बन्द कराकर कारा- फम एक वर्ष, और सर्व लगभग ३१ वर्ष के गृह में भिजवा दिया और बहुत दिन तक राय शाशन के पश्चात् 'अजातशत्रु' ने बढ़ा कष्ट देता रहा । माता के बारम्बार मुनि दीक्षा ग्रहण करली तो इसका उत्सरासमझाते रहने पर और पालक (लोक- धिकारी इसका पुत्र पालक बना जो दर्शक, पाल) नामक अपने शिशु पुत्र के स्नेह में दर्भक, हर्षक आदि कई नामों से प्रसिद्ध अपने मन को अति मोहित देखकर जब था। इसका राज्य अभिषेक, 'लोकपाल' एक दिन उसने पैतृक प्रेम का मूल्य नाम से किया गया और बालक होने के समझा तो उसे अपनी भूल और नादानी | कारण इसके पितृव्य चचा ) जित शत्रको पर अत्यन्त खेद और पश्चाताप हुआ। इसको संरक्षक बनाया गया। यह 'अजाततुरन्त ही पिता को बन्धनमुक्त करने के शत्र' की 'अवन्ती' नामक रानी के गर्भ से Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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