________________
( १७४ )
-
अजित वृहत् जैन शब्दार्णव
अजित पर्ययज्ञान' का भी आविर्भाव हो गया ॥ 'कैवल्यझान' (पूर्णशान या अनन्तज्ञान)
११. जिस समय इन्होंने दीक्षा धारण का प्रकाश होकर सर्वत्र उसकी व्यापकता | की उस समय इन के अनन्य भक्त एक स- होने से 'विष्णु', और अनन्त सुख सम्पत्ति हस्र अन्य राजाओं ने भी इन का साथ युक्त पूर्णानन्दमय होने से तथा सर्व घातिया दिया।
कर्मोको जो संसारीत्पत्ति या जन्ममरणका मुख्य १२. षष्ठोपवास (बेला) के दो दिन बीतने कारण हैं नष्ट कर देते से 'शिव', लोकालोक पर माघ शु० १२ को अरिष्टपुरी अर्थात् के सर्वचराचर पदार्थो का निरावरण अतेन्द्रिय अयोध्या ही में महाराज ब्रह्मदत्त (ब्रह्मभूत) ज्ञान प्राप्त हो जाने से 'सर्वज्ञ', तीन काल ने इन्हें नवधा भकि पूर्वक गोदुग्ध पाक | सम्बन्धी पदार्थो का ज्ञाता होने से त्रैकालश', का शुद्ध और पवित्र आहार निरन्तराय इत्यादि अष्टाधिक सहस्र या असंख्य और कराया ॥
अनन्त "यथा गुण तथा नाम" इसी अवस्था १३. मुनि दीक्षा धारण करने के पश्- | युक्त पवित्र आत्मा के हैं । आत्मा की इसी चात् ११ वर्ष, ११ मास और १ दिन तक | अवस्था का नाम “जीवनमुक्ति" या 'सदेहके उग्रोग्र तपोबल से इनके पवित्र आत्मा मुक्ति' है। इसी अवस्थायुक्त आत्मा को में अनेक ऋद्धियों का प्रकाश हुआ और "सकल परमात्मा' भी कहते हैं । अन्त में शुभमिति पौष शु०११ को अपरान्ह १४. कैवल्य ज्ञान प्राप्त होने के पश्चात् काल (सायकाल ) रोहिणी नक्षत्र में अयो- 'श्री अजितनाथ' के द्वारा एक पूर्वाह्न ११ ध्यापुरी के समीप ही के बन में षष्टोपवा- वर्ष, १०मास,६ दिन कम एकलाख पूर्वकाल सान्तर्गत ज्ञानावरणी आदि चारों घातिया तक अनेक भव्य प्राणियों को धर्मोपदेश कर्मीका एकदम अभाव होकर अनन्तचतुष्टय का महानलान प्राप्त हुआ। तत्पश्चात् अर्थात् अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त बङ्गदेशस्थ सम्मेदाचल अर्थात् सम्मेदपर्वत सुख और अनन्तवीर्यका आविर्भाव होगया। जो बङ्गाल देशान्तर्गत 'हज़ारीयाग' जिले
नोट २-जब कभी किसी सपोनिष्ठ में आज कल 'पाश्र्घनाथहिल' या 'पार्श्वमहानुभाव के आत्मा में महान तपोबल से नाथ पर्वत के नाम से लोक प्रसिद्ध है उस 'अनन्त ज्ञानादि चतुष्टय' का आविर्भाप और के शिविर (चोटी) पर शुभ मिती फा४६ मूलगुणों तथा ८४ लक्ष उत्तर गुणों ल्गुन शु० ५ को पहुँचकर आयु के शेष की पूर्णता हो जाने पर जो परम पूज्य, पवित्र भाग अर्थात् एक मास पर्यन्त 'सिद्धकूट' और परमोत्कृष्ट अवस्था प्राप्त हो जाता है, नामक कूट पर ध्यानारूढ़ रहे जिससे उसी अवस्था विशेष का नाम 'अर्हन्त' (अ- शेष चारों अघातिया कर्मों को भी नष्ट कर रहन्त ) है । घातिया कर्मों पर विजय पाने के शुभ मिती चैत्र शु०५ के प्रातःकाल रोहिणी कारण उसी अवस्था या पदवी का नाम नक्षत्र में कायोत्सर्ग आसन से परमोत्कृष्ट 'जिन' है। कर्ममल दूर होने और परम उच्च । निर्वाणपद प्राप्त किया । बन कर त्रैलोक्य पूज्य अपूर्व अवस्था की १५. श्री अजितनाथ के सम्बन्ध में नवीन उत्पत्ति होजाने से 'ब्रह्म' या 'ब्रह्मा', अन्य ज्ञातव्य बातें निम्न लिखित है:-.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org