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अजय
( १५६ )
वृहत् जैन शब्दार्णव
(२) २८ नक्षत्रों में से पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र के अधिदेवता का नाम । ( देषो शब्द 'अट्ठाईस नक्षत्राधिप' ) ॥
(३) अष्टम बलभद्र श्री रामचन्द्र के पितामह जो 'अनरण्य' नाम से भी प्रसिद्ध थे और जिनके पिता का नाम 'रघु' था ॥
प्रतापी महाराजा ' रघु' के गृहत्यागी हो जाने पर इन्हीं के वंशज 'सगर' ने ' रघु' के पुत्र युवराज 'अनरण्य' को अ योध्या की गद्दी से वंचित रख कर बलात् वहां अपना अधिकार जमा लिया और 'अरण्य' को वाराणसी की गद्दी पर सुशोभित किया । पश्चात् सगर की मृत्यु पर अवसर पाकर अनरण्य के पुत्र वाराणसी नरेश दशरथ ने अयोध्या को फिर अपनी राजधानी बना लिया । दशरथ के दो पुत्र राम और लक्ष्मण का जन्म वाराणसी में और दो पुत्रों 'भरत' और 'शत्रुघ्न' का जन्म अयोध्या में हुआ । राम के प्रपितामह महाराजा ' रघु' के नाम पर ही 'अयोध्या' की गद्दी की सूर्य. वंशो शाखा 'रघुवंश' के नाम से प्रसिद्ध हुई ॥
अजय- (१) नगदेश का एक सुप्रसिद्ध जैन राजा जो महा मंडलेश्वर राजा 'श्र े कि बिसार के पुत्र 'कोणिक अजातशत्रु' का पौत्र था। आगे देखो शब्द 'अजातशत्रु'"
नोट १- इस का चरित्र व राज्यकाल आदि जानने के लिये देवो ग्रन्थ 'वृहत् विश्वचरितार्णव' ॥
( २ ) श्री ऋषभदेव के चार क्षेत्रपाल यक्षों में से पहिले यक्ष का नाम ॥
नोट २ - अन्य तीन क्षेत्रपालों के नाम विजय, अपराजित और मानभद्र हैं ॥
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अजयपाल
(३) यत्नाचार रहित, गृहस्थ के समान साधु, अविरत सभ्यग्दृष्टी चतुर्थ गुणस्थानी | ( अ० मा० ) ॥ अजयपाल - चालुक्यवंशी सुप्रसिद्ध महाराजा 'कुमारपाल' का पुत्र ॥
अजयपाल अपने पिता के ३० वर्ष ६ मास २७ दिन का राज भोगकर लगभग ८१ वर्ष की वय में वि० सं० १२३० में परलोक सिधारने के पश्चात् अणहिलपाटण ( अनहिल नाड़ा- गुजरात ) की गद्दी पर बैठा । कुमारपाल ने इसे राज्यासन पाने के लिये अयोग्य देख कर अपने परम पूज्य गुरु 'श्री हेमचन्द्राचार्य' की सम्मति से अपने बहनेज 'प्रतापमल्ल' को राज्य सिंहासन देने का निश्चय किया था । पर इस दुराचारी 'अजयपाल' ने इस विचार का पता लग जाने पर 'श्री हेमचन्द्र' के स्वर्गारोहण से लगभग छह मास पीछे अवसर पाकर अपने पूज्य धर्मज्ञ, परोपकारी, परमदयालु पिता को राज पाने की लोलुपतावश विष दिला कर मृत्यु के गाल में पहुँचा दिया ।
'मोहपराजय' नामक एक नाटक ग्रन्थ इसी अजयपाल' के मंत्री 'यशःपाल' कृत है जो 'कुमारपाल' की मृत्यु के पश्चात् वि० सं० १२३२ के लगभग लिखा गया था । इस में 'श्री हेमचन्द्र' और उन के अनन्य भक्त 'कुमारपाल' का ऐतिहासिक चरित्र नाटक के रूप में सविस्तार वर्णित है ॥
नोट १. - गुजरातदेश के चौलुक्यवंशी राज्य का प्रारम्भ लगभग वि० सं० ९९७ से हुआ जिस के संस्थापक सोलङ्की
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