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। १४५ ) (अचितयोनि वृहत् जैन शब्दार्णव
अचितयोनि जैसे कुछ देव और नारकियों की तथो | ही हैं--(१) अचित (२) सचित और (३) कुछ एकेन्द्रिय जीवों की योनियां ॥ सचिताचित मिश्र । इन में से प्रत्येक के
(४) अचि त-उष्ण-विवृत योनि-वह | (१) शीत (२) उप्ण और (३) शीतोष्ण सचित योनि जो उष्णगुण युक्त खुली हुई | मिश्र, यह तीन तीन भेद होने से योनि के हो । जैसे कुछ विकलप्रय और सम्मूर्छन | नौ भेद हैं। इन नव में से (१) सचिता. पञ्छन्द्रिय जीवों की योनियां ॥ चित-शीत (२) सचिताचित उष्ण और
(५) अचित-शीतोष्ण-संवृत योनि-- (३) सचिताचित-शीतोष्ण, इन तीन में से वह अचित योनि जो शीतोष्ण मिश्रगुण प्रत्येक के (१) संवृत (२) विवृत और (३) युक्त ढकी हुई हो । जैले कुछ एकेन्द्रिय संवृत-धिवृतमिश्र, यह तीन तीन भेद हैं जीपों की योनियां ॥
और शेष ६ में से प्रत्येक के (१) संवृत | . - (६) अचित-शीतोष्ण-विवृत योनि- और (२) विवृत, केवल यह दो ही भेद हैं | यह अचित योनि जो शीतोष्ण मिश्रगुण जिस से योनि के सर्व भेद गुण अपेक्षा २१ हो । युक्त खुली हुई हो । जैले कुछ विकलत्रय जाते हैं जिन के अलग अलग नाम निम्न । और सम्मूर्छन पञ्चेन्द्रिय जीवों की लिखित हैं:योनियां ॥
(१) अचित-शीत-संवृत (२) अचित्त · · नोट?-पैदा होने या उपजने के स्थान शीत-विवृत (३) अचित-उष्ण-संवृत (४) अविशेष को 'योनि' कहते हैं जिस के मूल भेद चित-उष्ण-विवृत (५) अचित-शीतोष्णेसंवृत।
(६) अधित-शीतोष्ण-विवृत (७) सचित-शीत. (१) आकार योनि और (२) गुणयोनि। संवृत (८) सचित-शीत-विवृत (8) सचित
योनि के आकार अपेक्षा तीन भेद है-- | उग-संवृत (१०) सचित-उष्णविवृत (११) । - (१) शंबावर्त्त-जिस के भीतर शङ्ख की सचित-शीतोष्ण-संवृत (१२) सचित-शीतोसमान चक्र हो।
पण-विवृत (१३) सचिताचित-शीत-संवृत। (२) कर्मोन्नत--जो कछवे की पीठ (१४) सवितावित-शीत-धिवृत (१५) सचिसमान उठी हुई हो।
त.चित-शीत-संवृत-विवृत (१६) सचिता__ (३) वंशपत्र--जो बांस के पत्र की चित उष्ण-संवृत (१७) सचितावित-उपा-पि. समान लम्बी हो ॥
वृत (१८) सचितावित-द-संवृतधिवृत इन में से प्रथम प्रकार की योनि में (१६) सचिलाधित-शीतो-रावृत (२०) सनियम से गर्भ नहीं रहता और यदि रहता चिताचित-शीतोष्ण विवृत (२१) सचिता-1 भी है तो नष्ट हो जाता है। दूसरी में तीर्थ चित-शीतोष्ण-संवृत वित॥
रादि पदवी धारक महान पुरुष तथा गुणअपेक्षा योनिके इन २१ भेदों में से साधारण पुरुष भी उत्पन्न होते हैं और प्रथम के ६ भेद "अचितयोनि' के हैं। इन तीसरी में तीर्थङ्करादि महान पुरुष जन्म नहीं से अगले ६ भेद "सचितयोनि" के हैं और लेते, साधारण मनुष्यादि जन्म लेते हैं। शेष भेद सचिताचित मिश्र योनि के हैं।
योनि के गुण अपेक्षा भी मूल भेद तीन योनि के इन २१ भेदों को उपयुक
साज
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